Saturday, 27 May 2017

पिछले गर्मी की छुट्टियों में रांची गयी तो सुना कि मेरी एक बचपन की सखी ने अपने पिता को खो दिया ।स्कूल से लेकर अब तक मैंने उस परिवार से बहुत स्नेह पाया तो उस व्यक्ति की मृत्यु से मैं विचलित हो गई और मैंने उसकी माँ से फोन पर बात की । आशा के बिपरीत मैंने उनकी आवाज में हम सभी के लिए अच्छा संदेश पाया ।जब मैंने उनसे कहा कि आंटी ,बाबा चले गए ।उन्होंने अपनी दर्दभरी आवाज में कहा कि हां बेटा, बाबा तो चले गए ! जाने वाले को कौन रोक सकता है लेकिन मेरी दोनों बहुएं बहुत अच्छी है और मेरा बड़ा खयाल रखती है ।मैंने कहा कि हां आंटी बेटे अगर अच्छे हो तो बहुएं अच्छी हो ही जाती है ।उन्होंने छुटते ही कहा न बेटा ,बेटे तो मेरे खुद के हैं अगर मेरी बहुएं अच्छी न हो तो मेरे बेटों को बदलने में देर नहीं लगेगीं बल्कि मैं तो आज बुजुर्गो की हालत देख कर कहती हूँ कि मेरी बहुएं बहुत अच्छी है और वैसे भी मेरी ये सोच है कि अगर कोई आपको एक गिलास पानी का भी दे तो उसकी तारीफ जरूर करें ।बाद में मैंने अपनी उस सहेली से इस बात का जिक्र किया तो उसने हंसते हुए  कहा कि जब मेरी बड़ी भाभी आयी तो मेरी नज़र में उस लड़की में कुछ वैसी बात नहीं थी लेकिन माँ के हर छोटी बात में की गई तारीफ ने उसे वर्तमान में वाकई तारीफे काबिल बना दिया । तारीफ की इस आदत ने  छोटी को भी बड़ी के बराबर ला दिया । बचपन में हमने एक कहानी पढ़ी जिसमें यह कहा गया कि देवता और मानव में क्रोध और लोभ छोड़ कर दूसरा कोई अंतर नहीं अर्थात अगर मनुष्य के अंदर क्रोध या लोभ न हो वो मनुष्य न रह कर देवता बन जाए ,फिर वह लोभ अपनी प्रशंसा पाने का ही क्यों न हो।आप एक छोटे बच्चे की तारीफ कर देखिए वो  दुबारा कितने जोश से काम में लग जाता है  ।अर्थात किसी भी मनुष्य के लिए उसके काम के लिए दी गयी शाबाशी उसके लिए विटामिन का काम करती है ।तो मेरी ओर से छोटा मुँह बड़ी बात ,अपने रिश्तों में गर्माहट लाने के लिए अपनों  के कई गए काम की तारीफ करें ,इस मामले में ये सोचना गलत है कि ये उसे करना ही चाहिए ।तो किसी टीवी के विज्ञापन की तरह तारीफ करके देखिए ,अच्छा लगता है वैसे भी हमारे बड़े तो कह कर गए हैं " वचने किम दरिद्रता " ।

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