Thursday, 11 May 2017

पता नहीं आपका ध्यान आज कल नवनिर्मित मकानों के बाहरी भीतरी बनावट और रंग रोगन की ओर गया है या नहीं ? कुछ अजीब सी बनावट और एक से एक आंखों को चुभने वाले रंग।कभी कभी देखती हूँ कि अच्छी भली इमारत तोड़ी जा रही है या बने हुए घरों में कोई ऐसा परिवर्तन जो सामान्य से हटकर महसूस हो तो निश्चय ही ये सब वास्तु  की ओर इशारा करते हैं।हमारे शहर में   एकाध ऐसे वास्तु पंडित हैं जो तमाम गणमान्य अधिकारियों, व्यपारियों से लेकर मंत्री निवास तक की घरों और कार्यालयों के वास्तु दोष मिटाने या उपाय बताने की एक तगड़ी फीस वसूलते हैं ।मैं इस बात से काफी हैरान हूं किआज जिसे हम वास्तु ज्ञान कहते हैं वो सम्भवत हमारे मिथिला के हर घर मे मौजूद था ।जरा याद करें अपने गाँव के घर के पुरानी रचना की ।यहां मैं स्पष्ट करती हूँ  मिथिला के गाँव के किसी भी घर के बारे में ।घर से मेरा मतलब आज से बीस वर्ष पहले के घरों के बारे में है । आज लगभग हर घर मे परिवर्तन आ गया है हो सकता है लोगों का गाँव से शहरों की ओर पलायन और वही स्थाई निवास कर लेना है ।सभी घर में ,बीच में आँगन और उसके चारों ओर घर।इसमें घर की आर्थिक स्थिति के अनुसार मात्र ईंट आदि में परिवर्तन होता था अर्थात अगर घर सम्पन्न है तो पक्की ईंट और खपरा या विशेष परिस्थिति में पक्की छत रहेगी और अगर गृह स्वामी गरीब है तो कच्ची ईंट और फूस की छत होगी लेकिन दिशा और घरों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं ।पश्चिम दिशा में जो घर उसे पछबरिया घर कहते थे ।इसमें भगवती घर अर्थात कुलदेवी का स्थान और इसी से सटी हुई रसोई ।इसके ठीक सामने पूर्व की ओर जो घर रहे वो पूवरिया घर कहलाए इसमें सोने के कमरे और इसका जो बाहरी हिस्सा था वो पुरुषों के बैठने के काम में लिया जाता था ।अब आती है बारी दक्षिण की ओर वाले घर ,जिसे दक्षिणबरिया घर कहते थे ।इसके कमरों का इस्तेमाल शादी के समय कोबर घर से होता था और कोबर घर से सटा एक बाहरी कमरा ,जिसमें दामाद के आने पर सोने की व्यवस्था होती थी।उत्तर की ओर के घर को उत्तरवरिया घर कहते थे जिसका उपयोग  सम्भवत अन्नभंडार  के रूप में होता था । हर घर का दक्षिण पश्चिम के कोने में चापाकल होता था जहाँ बाथरूम और शौचालय रहते थे ।शौचालय सोने वाले कमरों से पर्याप्त दूर होते थे इसके पीछे शायद  "पैखाना और समधियाना घर से दूर ही अच्छे होते हैं" जैसी भावना रही होगी ।
वैसे दक्षिण पश्चिम कोने में जल निकासी की व्यवस्था की वजह उस जगह पर  पर्याप्त धूप का आगमन हो .कहने का मतलब ये कि किसी बाहरी व्यक्ति के लिए भी हमारे यहाँ के घरों में जाकर पूजा घर या बाथरूम खोजना अत्यंत सरल था क्योंकि इन सब के लिए हर घर की दिशा निश्चित थी । इतने लिखने के बाद भी मिथिला के घरों के कमरों की स्थिति और उनके मकसद के बारे में पक्के तौर पर कह नहीं सकती और 
इस दिशा में सभी से अपनीअपनी जानकारी देने  का आग्रह करती हूँ जिससे मेरे साथ साथ हमारे बच्चे अपने पूर्वजों के इस ज्ञान को जान सकें कि कैसी सुंदर बनावट , हर घर की बनावट बिल्कुल एक सी ,जिन घरों में तुलसी के चौरा से लेकर देवी के पूजा स्थान एक दिशा में  हो ! कभी कभी तो हमारे ये पुराने घर  मुझे सदियों पहले की सभ्यता की याद दिलाती है  जिनकी पढ़ाई हमने स्कूल के दिनों में किया था ।

No comments:

Post a Comment