पापा के दोस्त पाण्डेय जी के दो बेटे और एक बेटी ।पांडेय अंकल सरकारी नौकरी में थे अपने जिंदगी में तीनों बच्चों को पढ़ाया लिखाया ,पहले बेटी की शादी की और फिर बड़े बेटे की ।बड़ा बेटा उसी शहर में प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था बहु साधारण परिवार से आई धीरे धीरे ससुराल के हिसाब से ढल गई ।छोटे बेटे ने छोटे मोटे व्यवसाय की शुरुआत की और साल बीतते किसी नौकरीपेशा लड़की से शादी कर ली ।अब घर में दो बहुएं आ गई ।छोटी बहू नौकरी करती है इसलिए घर के किसी काम को हाथ नहीं लगाती ।बड़ी बहू को बुरा न लगे इसलिए सास काम मे लगी रहती है ।घर का बड़ा बेटा घर चलाता है और छोटा घर में सामान खरीदता है ।दोनों बेटों के साथ अंकल आंटी खुश थे ।बीच बीच में बेटी आती ,बड़ी भाभी जहाँ उसकी पसंद के डोसा बनाती छोटी उसे और उसके बच्चों को कपड़े दिलाती ।डोसा तो एक दिन में पच जाता लेकिन कपड़े महीनों तक छोटी भाभी की याद दिलाती ।खैर इसी तरह दो साल बीते घर में बड़े बेटे के दो बच्चे और छोटे के घर में भी एक बच्चे ने जन्म लिया ।इसके साथ ही छोटे बेटे ने घर में गाड़ी ,एसी ,इन्वर्टर और सुविधा की सभी चीज़े खरीद ली ।पापा की मित्र मंडली में पांडेय अंकल एक मिसाल बनते कि अचानक एक दिन छोटे बेटे ने एक किराये का घर ले लिया ।अब छोटे बेटे के साथ घर के सभी सामान चले गए ।बड़ा बेटा जब पूरे घर का खर्च चलाता छोटा टी वी खरीदता ,बड़ा जब बिजली का बिल भरता छोटा गाड़ी की EMI भरता ।नतीजन छोटे ने पूरे साजो सामान के साथ अपने घर की शुरूवात की क्योंकि पूरे दो साल घर के खर्चो से मुक्त रहा ।महीनों तक पांडेय अंकल लोगों से नज़रे चुराते रहे ।छोटे बेटे की चालाकी उन माँ बाप के लिए एक सीख है जो आंख मूंद कर बेटों पर यकीन कर लेते है और न चाहते हुए किसी एक का नुकसान कर देते हैं ।
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