Thursday, 4 May 2017

कुछ दिन पहले मैंने एक पोस्ट शेयर किया था जिसका सार यह था कि बिल गेट्स जैसी प्रसिद्ध हस्ती अपने खाने का प्लेट खुद साफ करती है । हमारे समाज के कितने पुरुष इस मामले में गेट्स का अनुसरण करना चाहते हैं ? शेयर किए गए इस पोस्ट को न के बराबर प्रतिक्रिया  मिली ।मैं नहीं जानती कि बिल गेट्स से संबंधित ये जानकारी कितनी सच है ! लेकिन इस पोस्ट ने मेरा ध्यान  किसी पुरूष के  अपने  के घर के  काम काज में हिस्सा लेने पर खींचा ।भारत एक पुरुष प्रधान देश है ।प्राचीन काल से ही हमारे यहाँ स्त्री और पुरुष के कार्य बंटे हुए हैं ,जहाँ पुरुषों का काम धन अर्जन करना था वहीं औरतों के जिम्मे घर के चारदीवारी के  अंदर का काम था ।जमाना बदला ,  घर की महिलाओं के जिम्मे बैंक ,बाजार ,बच्चों के स्कूल ऐसे कई काम जुड़ते गए  लेकिन ज्यादातर घरों में पुरुषों की भूमिका जीविकोपार्जन ही तक सीमित रही ।समय ने एक और करवट ली और अधिकतर घरों की महिलाओं ने  घर से निकलकर नौकरी भी करना शुरू कर दिया अर्थात  उन्होंने घर की अर्थव्यवस्था में भी अपनी हिस्सेदारी बाँटी । जाहिर  है  घर में औरतों के कार्य में हिस्सेदारी बढ़ी लेकिन पुरुष के कार्य अपनी सीमा में बंधे रहे ।मैं सभी पुरुषों को दोष नहीं देती लेकिन आज भी हमारे यहाँ उन पुरुषों की कमी नहीं जो शाम में लगभग घर एक साथ पहुँचने पर पत्नी से पूरी सेवा की उम्मीद रखते हैं ।यहाँ उनके मन में अपनी माँ या बहन जो कभी घर से बाहर ही नहीं निकली उनकी अमिट छवि है जो घर से बाहर की दुनिया से अनजान है औऱ उनके जिम्मे मात्र घर के कार्य हैं ।  इस संसार मे माँ की बराबरी कोई नहीं कर सकता लेकिन क्या किसी भी पुरुष के जीवन में पत्नी की कोई भूमिका नहीं जो हर तरह से उसके जीवन को सुखी करने को तैयार है । मैं इसके लिए पुनः हमारे सामाजिक ढांचे और बच्चे के पालन पोषण को ही दोष देना चाहूंगी बचपन से ही एक लड़के के मन में ये बात रहती है कि घर का काम करना मात्र लड़की की जिम्मेदारी है तो मैं ये सलाह सभी माताओं को देना चाहूंगी कि अपने बच्चों को  घर के काम की शिक्षा जरूर दे यहां बच्चे का लड़का या लड़की होना कोई खास मतलब नहीं रखता । माँ की दिलाई गई  छोटी सी आदत उसके बच्चे के दाम्पत्य जीवन की सफलता के लिए अहम भूमिका निभा सकती है। इसके पीछे  औरतों का नौकरीपेशा होने के साथ साथ हर घर में घरेलू सहायक( नौकरों या महरियों) की दिनों दिन होने वाली कमी है ।तो अगर हम सामाजिक और आर्थिक विकास में पाश्चात्य देशों की तरह बनना चाहते हैं तो हमें अपनी मानसिकता भी बदलनी होगी जो हमें सतत विकास की ओर आकर्षित करता है ये बात भले ही छोटी है लेकिन किसी घर को शांति दे सकती है ।

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