Wednesday, 18 September 2019

लगभग तीन चार साल पहले मेरी एक स्कूल की सहेली से अचानक रांची में मुलाकात हो गई ।उसने बातों ही बातों में बताया कि गार्गी ने हमारे बैच का एक वाटसऐप ग्रुप बनाया है जिसमें अगर तुम्हारी इच्छा हो तो तुम जुड़ जाओ । उस समय हमें स्कूल  छोड़े हुए लगभग 24-25 साल से ज्यादा हो गया था। मैंने सहर्ष अपनी रज़ामंदी दे दी और उस ग्रुप से जुड़ गई । आज   हमारे ग्रुप में 45 सहेलियां हैं जो देश और विदेश में रहती हैं  । मैं अक्सर अपनी बेटियों से अपनी इन सहेलियों के बारे में चर्चा करती हूं । तारीफ की बात ये है कि हमारी जिस दोस्ती का आधार किसी भी सोशल मीडिया के जरिए नहीं हुआ था उसे सोशल मीडिया ने ही एक सूत्र में बांध दिया  ।आज हम सभी सहेलियों के बीच स्कूली जीवन के समय चलने वाली दुराव ,छिपाव और  घमंड जैसी भावना खत्म हो गई है । अगर किसी को डॉक्टर की जरूरत है हम निसंकोच अपने ग्रुप की डॉक्टर मित्रों को याद करते हैं । आज लगभग हम सभी की  समस्याएं एक तरह की हैं  जैसे बच्चों की पढ़ाई ,टीन एजर बच्चे और   अपनी युवावस्था को पीछे छोड़ती उम्र ।न अब किसी को उसके पति के बड़े पद  से मतलब है न ही उसके विदेश प्रवास से कोई ईर्ष्या । अक्सर हम अपनी स्कूली बातों को याद कर घंटों हँसते हैं ।किसी भी नए शहर में किसी को जरूरत पड़े ग्रुप में संदेश छोड़ दो  मदद के लिए दो तीन हाथ उठ ही जाएंगे  ।जब बेटी के पढ़ाई के दौरान  exhibition में हौसला अफजाई की बात आई तो मेरी सखी मौजूद । अब तो ये समूह मेरे लिए परिवार की तरह है जिससे मैं हर बात शेयर कर सकती हूं और  जब पिछले 12 को मुंबई से बेटी को लेकर पटना लौट रही थी तो गणेश विसर्जन ,मुंबई की झमाझम बरसात और अपनी सुबह 5 बजे से चलने वाली व्यस्त दिनचर्या के बावजूद रात के 10:30 बजे मेरी सहेली  उपहार के साथ स्टेशन पर आई । लगभग 50 मिनट की मुलाकात में कई बार आँखे गीली हुई ।जब हिसाब लगाया तो समझ में आया कि लगभग 27 सालों के बाद हम मिले थे लेकिनऔर  ये बात जेहन से उतर गई कि जब हम मिले  थे और आज के मिलने के बीच हमने एक लंबे अरसे को पार कर लिया। लेकिन आज तक सोशल मीडिया की खराबियों पर ही मेरी नज़र थी पर धन्य ये टेक्नोलॉजी जिसकी बदौलत मैं अपनी प्रिय सखी से मिली जो मेरे लिए निश्चित रूप से एक ठंडी हवा का झोंका थी जिसने मेरे सभी तरह के तनाव को अपनी अल्प अवधि के भेंट  से कम कर दिया।

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