Sunday, 22 September 2019

पितृ पक्ष में सभी पितरों को मेरा नमन । जब इन दिनों में अपने पूर्वजों को याद करती हूं तो याद आती है एक भोली भाली ,सीधी और स्निग्ध छवि ।मेरी दादी जिन्हें सभी बच्चे " बड़का माँ " कहते थे ।फिर वो चाहे मेरे बच्चे हो या खुद मैं ।सभी के लिए वो ममता की मूरत थीं । जब मेरे बाबा की अचानक मृत्यु हुई उस समय मैं बस दो बरस की थी इसलिए बड़का माँ को अपनी स्मृति  में मैंने वैधव्य रूप में ही पाया ।बाबा के मृत्यु के समय का बड़का माँ की तस्वीर जब  देखती हूं तो लगता है कि आज के समय में न जाने इस उम्र में  लड़कियां  अपने खुशहाल जीवन के शुरुआती चरण में ही होती  है और उस  आयु में  उनकी सारी खुशियां समाप्त हो गई ।   पहले हमारे मिथिला में विधवाओं के लिए बहुत सी वर्जनाएं थीं जिनका पालन ताउम्र उन्हें करना पड़ता था ।  पहनने से लेकर खाने पीने तक उन्हें काफी पाबंदियां थी फिर भी वो खुश रहा करती थीं । पहले जब बड़का माँ गांव
व में रहती  और हम गांव जाते तो  हमारी सारी फरमाइश यथासाध्य वो पूरा करने की चेष्टा करती  या यूं कहें कि वो किसी की कोई भी बात नहीं  काटती ।रात में वो हमें तरह तरह की कहानियां भी सुनाती जो मुझे आज भी कंठस्थ है । इन्हीं कहानियों  का लालच में हम सभी चचेरे फुफेरे भाई बहन रात में उन्हीं के पास सोना चाहते । स्वभाव से वो अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति की थीं । मैं जब फिल्मो या सीरियलों में सास बहू के टकराव की बात सुनती तो ये बातें बिल्कुल झूठ लगती क्योंकि मैंने अपने घर में इस तरह की बात ही नहीं देखी।लेकिन कुछ लोगों के नसीब में दुख की मात्रा अधिक होती है मुझे उनकी जिंदगी को देखकर कुछ वैसा ही लगा ।कम उम्र में उन्हें वैधव्य का दंड मिला ,प्राणों से प्रिय छोटे भाई का देहांत और अपनी जिंदगी में दो दो पुत्रों की अकाल मृत्यु । जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने  काफी संताप झेला । मैंने सुना है कि जब इस जीवन में कष्टों की अति हो जाती है तो वो आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर लेती  है तो शायद उनके इस कष्टों ने उनके लिए मोक्ष का द्वार खोल दिया हो और वो जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो गई हो ।

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