Sunday, 29 May 2016

चैत की प्रचंड धूप मे बाजार से लौट रही थी ।चैत का जिक्र मैने इसलिए किया कि ईश्वरीय अनुकंपा से अब वैसी धूप के लिए हमें जेठ का इंतजार  नहीं करना  पड़ता है ।खैर ,फल के ठेले के पास पहले रिक्शे  वाले ने दो चार किस्म के फल लिए और सामनेवाले दुकान में जाकर काजू किशमिश जैसे सूखे मेवे की  खरीद की। वापस रिक्शे के पास आकर मेरी ओर शर्मिंदगी के भाव से देखते हुए उसने  कहा कि "बेटा  बीमार है  डाक्टर ने खाने को कहा है "। मुझे इतनी ग्लानि  हुई  कि मै इसे शब्दों में व्यक्त नही कर सकती। क्या एक गरीब अपनी  कमाई  से फल और मेवे नहीं खा सकता है ?

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