बाल स्मृति के नाम पर एक बात मुझे अच्छे से याद है कि छुटपन से मुझे कामिक्स और अन्य किताबों का बङा शौक था ।जब मै माँ पापा के साथ किसी रिश्तेदार या पापा के किसी मित्र के घर जाती और अपनी मनपसंद किसी किताब देखने के साथ ही पढने लगती तो माँ आँख दिखाती और कई बार नही मानने पर लोगों के सामने ही जोरदार डाँट भी लगाती ।उतना ही नही घर आने के बाद भी माँ की यह दलील रहती कि तुम किताब पढो और सामने वाला अपमानित होता रहे ।चूंकि उम्र कम थी इसलिए इतनी बात समझ नही पाती लेकिन माँ की लगाई आदत बनी रह गई । आज किताबो की जगह मोबाइल ने ले लिया है हममे से बहुत लोगो की ये आदत है हम सामाजिकता के लिए कहीं जाते है और वहाँ तथा कथित सोशल मीडिया पर लग जाते है और शायद यह भूल जाते है कि हम किसी के पास बैठे है और बहुत संभावना इस बात की है कि कोई अपना जरूरी काम छोड़कर आप के पास बैठा हो । आप जिस किसी घर जाते है उनकी मनोस्थिति का भान आपको
शायद उस वक़्त हो जब ये घटना खुद आपके साथ घटे । इससे बहुत अच्छा है आप उस जगह जाए ही नही ।कम से कम आपके द्वारा किसी के समय का हनन तो नही हुआ !शायद हम इस बात को भूल रहे है हमारी आने वाली पीढ़ी हर बात में हमेशा हमारी ही नकल करती है ।
Sunday, 29 May 2016
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