Sunday, 29 May 2016

विगत तीन चार महीनो  से मेरे मन मे असंतोष की भावना चल रही थी ।मै अक्सर इस बात से परेशान  रहती कि मै कुछ नही  करती !  किसी भी महिला को अगर नौकरी करती हुई पाती तो मुझे  बङी हीन भावना का अहसास होता  । हमेशा ऐसा  लगता कि बेकार  ही मैंने पढ़ाई की । इसी बीच मेरी एक अभिन्न सखी के चाचा का किसी कारणवश  उसके घर आना हुआ । हम उनसे मिलने पहुंचे ।बात चीत के क्रम मे चाचाजी ने मुझसे पूछा  कि तुम क्या करती  हो  ।मुझे ऐसा लगा किसी  ने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो ।मैने शर्मिंदगी के साथ जबाव दिया  कि मै कुछ भी नही करती ।"क्या  मतलब " ।नही मै तो बस घर मे ही रहती हूँ । उन्होंने कहा कि कोई महिला  अगर  नौकरी  नही करती  तो इसका  ये  मतलब  ये थोड़े ही है वो  कुछ  नही  करती और  इसे  निभाना बहुत ही कठिन है ।और जहा तक  पढ़ाई  का प्रश्न है क्या ये आवश्यक है कि जिसने  पढ़ाई की  वो  नौकरी करे ।  हमारे बच्चे  खासतौर  बेटियाँ  आज एक  मुकाम  पर पहुंच रही है  जिस  उम्र  मे  हमारा विवाह  हो चुका था  उस उम्र  को  पार करने के बाद भी उसे  बिना  उसके  कैरियर  बनाए  हम  किसी  बन्धन  मे नही  बाँधना  चाहते  इसके  पीछे  कौन  सी  भावना काम कर रही है ।ऐसा   हमारे  दकियानूसी  समाज  मे  इसलिए  संभव  हुआ  क्योंकि  आज  की माँ शिक्षित  है ।चाचाजी  ने उस शाम  इतने तर्कपूर्ण  लहजे  मे बात  कही कि   वक्त  किस  तरह गुजरा  हम समझ नही पाए ।  सारी  बातो का जिक्र  तो मै नही  कर  पाई पर इतना  ज़रूर है कि मैंने उस शाम  अपने आप को  काफी हल्का महसूस किया ।

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