पिछले पखवाड़े मे मेरी छोटी पुत्री का रिजल्ट प्रकाशित हुआ ।उसने काफी अच्छे नंबरों से दसवीं की परीक्षा पास की ।रिजल्ट से पहले ही उसने तय कर रखा था कि उसे आर्ट्स की पढ़ाई करनी है ।रिजल्ट के बधाई के साथ प्रायः सबने एक ही बात कही " साइंस लेना है ना" ।मेरे नहीं कहने पर "अच्छा फिर कामर्स "।नहीं इसे आर्ट्स लेना है ।क्यों नम्बर तो है ! बस इसका मन है ।इसी बीच उसकी एक सहेली उससे मिलने को घर आई ।उस बच्ची के बारे मे मै जानती थी कि अंग्रेजी और हिंदी दोनो ही भाषा पर इसकी जबरदस्त पकड़ है और किसी भी विषय पर कभी भी लिखना इसकी विशेषता है। हर प्रकार की कविता दोनो ही भाषा मे वो किसी भी क्षण लिख सकती है ।मेरी समझ से ये देवी सरस्वती का वरदान है।जो हरेक को नहीं मिलता ।लेकिन माँ-बाप की जिद है कि वो डाक्टर ही बने ।पूरी परीक्षा उसने तनाव मे गुजारी ।जिस दिन हिंदी की परीक्षा थी उस के एक रात पहले वो फिजिक्स पढ रही थी ।अंतिम परीक्षा के दिन उसने लगभग रोते हुए कहा कि मेरे तो साइंस और आर्ट्स दोनो अच्छे नही हुए । बावजूद इसके रिजल्ट मे उसके साइंस में लगभग 60% आए और नहीं पढने के बाद भी आर्ट्स में 96% + नंबर आए ।मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा कि कोई बात नही डाक्टर लेखक हो सकता है ना ।शौक तो मरता नही !उस बच्ची ने कहा कि शौक तो उम्र के साथ बढती जाती है । खैर मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वो उसके माँ-बाप की इच्छा और उसके शौक के बीच तालमेल बैठाने मे उस छोटी सी बच्ची की मदद करें ।
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