विगत तीन दिनों से प्रत्यूषा बर्नजी के आत्महत्या की खबर ने विचलित कर दिया ।क्या परेशानी रही होगी उस चौबीस साल की बच्ची की कि उसने इतना बड़ा कदम उठाया। लगभग दो महीने पहले मैंने एक फिल्म देखी "नीरजा"। यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है। प्रायः एक सी उम्र है। नीरजा की उम्र तेईस वर्ष और प्रत्यूषा की उम्र चौबीस वर्ष।दोनों ने मौत को गले लगाया लेकिन कितना अंतर है दोनो की मौत में। जहाँ एक के माता पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया और इतने वर्षो के बाद भी बेटी की मौत ने उन्हें हरपल गौरवान्वित किया।औरदूसरी ओर उस माँ-बाप बारे मे सोचे जो हर रोज एक नई कहानी के बारे मे सुना रहा है। दुआ मांगे ईश्वर से कि बच्चे चाहे हमारा सर ऊँचा करे या ना करे पर ऐसा कोई काम न कर जाए जो हमारे सर को हमेशा के लिए झुका न दे।
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