आज कल शादी विवाह का लग्न जोरों पर है। पटना में रहने के कारण हमें लगभग सभी लग्न में एक दो शादी में शामिल होने का मौका मिल ही जाता है। पहले हमारे यहाँ की शादियाँ काफी शालीनऔर बिना किसी दिखावे के हो जाती थी। सबसे बड़ी बात ये थी कि हमारे यहाँ की शादियाँ दहेज और लेन देन से परे होती थी। जिस माँ-बाप ने अपने हैसियत के हिसाब से जो दिया सभी उसमे खुश रहते थे। अब समय के साथ सब कुछ बदला तो शादी और उसमे होने वाले खर्चे भी बहुत बढ गए।अगर आज की तारीख में बगैर दहेज की मांग वाली शादी का आकलन करे तो खर्च बेहिसाब है। तकलीफ तो तब होती है कि कई शादियों में खाई मिठाई की मिठास जीभ से उतरी नही और सुनने में आता है कि शादी टूट गई। कई बार बात तलाक तक बात पहुंच जाती है।पहले शादी के बाद संबंध विच्छेद या तो उच्च वर्ग मे होता था या बिल्कुल निम्न वर्ग मे लेकिन अब हमारा मध्यम वर्ग भी इससे अछूता नही। क्या कमी हो रही है हमारे संस्कारों में कि बच्चे इतना बड़ा कदम उठाने पर विवश हो जाते है। पहले जहाँ लड़के और लडकिया कम उम्र के होते थे वही अब लडकियाँ को अपने पैरो पर खड़े करने के बाद ही हम शादी के बंधन मे बाँधते है। पहले जहाँ सास ससुर, देवर और नन्द की फौज साथ रहती थी वही अब पति-पत्नी को एक दूसरे को झेलना भी दूभर हो गया है। क्या यही मूल्य चुकाना होगा हमे बच्चो को आत्मनिर्भर बनाने का। गलती किसी की भी हो परिणाम तो दोनो ही परिवार भुगतते है ना।
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