Sunday, 29 May 2016

अल्मोड़ा में एक कहावत है कि" जिस दिन से एक बच्चे ने हँसने  की शुरुआत की उसी दिन से उसकी माँ के बालों के झङने की शुरुआत भी  हो गई "।कहने का तात्पर्य है कि बच्चे के जन्म के साथ ही माँ की चिंता आरंभ हो जाती है ।आज जब मैं दो किशोरवय  पुत्रियों की जननी  हूँ तो मुझे लगता है कि ये बात न सिर्फ मेरी नही बल्कि मेरे जैसी सभी माताओं की है ।कभी-कभी हम अपने आप को इस कदर लाचार पाते है कि कोई  कदम उठाने से पहले कई बार हमारी स्थिति साँप  छछूंदर की हो जाती है ।कई बार मुझे बेहद परेशान देखकर मेरी एक प्रतिवेशिनी मुझे दिलासा दिया करती थी कि मात्र विश्वास की डोर से ही  हम बच्चे को बाँध  सकते है ।मेरी वसु घूमने की बेहद शौकीन है और उस हिसाब से हमारे पटना  का माहौल  थोड़ा  असुविधाजनक है  उसकी इसी आदत से तंग आकर मैने निश्चय किया कि अब मै उसे कही निकलने ही नही  दूंगी  ,मेरे घर काम करने वाली बाई ने हंसकर मुझसे कहा "चार  पैरो वाले बांधे जाते है दो पैरों वाले तो कभी बंध ही नही सकते "।जो बात एक अनपढ बाई ने समझ लिया वो मै माँ  से मम्मी  मम्मी  से माॅम और अंततः ममा होने के बावजूद समझ नही पाई  !

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