Monday, 6 December 2021

अरे वहाँ तो सिर्फ मुस्कुराने को कहा गया था लेकिन हमारे लिए  मीठी का मतलब ,जोर की हंसी या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ठहाका ही ठहाका ।बाहरी लोगों के लिए बेहद गंभीर और अंतर्मुखी ।लेकिन घर में  किसी भी  परिस्थिति में, फिर चाहे घर में कोई कितने भी तनाव में हो ,मीठी की  हाजिरजवाबी के द्वारा हम  बहुत देर तक तनावपूर्ण नहीं रह सकते । मीठी के जन्म की बेहद खूबसूरत याद मैं आप सबसे share करती हूं ।जन्म के तुरंत बाद जहां एक ओर मेरे कानों में बच्चे के रुदन स्वर आया वहीं दूसरी ओर कुर्जी हॉस्पिटल की सिस्टर्स का समवेत प्रातःकालीन  कैरोल स्वर।
मानों ईश्वर अपने हाथों मुझे उपहार दे रहा हो ।
जन्मदिन   की बहुत बहुत शुभकामनाएं ,बहुत आशीर्वाद ।भगवान तुम्हें इसी तरह जिंदगी में हमेशा खुश  रखें ।

Sunday, 20 June 2021

    लगभग एक सफ्ताह पहले मेरे पति के एक मित्र ने फ़ोन पर बातचीत के सिलसिले में अपने रिटायरमेंट के बाद  दो रूम के फ्लैट खरीदने की बात कही । उस मित्र के दो बच्चे (एक बेटा और एक बेटी ) हैं और बाहर  नौकरी करते हैं । छह माह पूर्व बेटी की शादी हो चुकी है ।दो बच्चों के कारण हमने उन्हें तीन रूम के फ्लैट को  खरीदने की सलाह दी जिसके जवाब में  उन्होंने  हँसते हुए कहा कि मैंने अपने लिए एक छोटे  फ्लैट  ही खरीदने की बात सोची है और कुछ धनराशि  दोनों बच्चों को देने का फैसला किया है जिससे वो अपनी नौकरी वाले शहर में एक बड़ा फ्लैट ले सकें । हमने जब उनके इस बात की वजह पूछी तो उनका जवाब था कि जब से बच्चों ने नौकरी शुरू की है  बेटा या बेटी सामान्य स्थिति में एक सफ्ताह से अधिक के लिए हमारे पास नहीं आ पाते हैं ।वहीं मेरे रिटायरमेंट से पहले ही हमारा  उनके पास जाना कभी 15 दिन या एक महीने से कम का  नहीं होता है । इस सिलसिले में माता पिता के उम्र होने के बाद बच्चों के पास रहने के समय में इजाफा ही होगा तो बड़े घर की जरूरत बच्चों को पड़ेगी न कि माता पिता को ।अब हमारे समय के अनुसार बहू या बेटी छुट्टियों में केवल अपने मायके या ससुराल नहीं जाती है बल्कि अपने आर्थिक स्थिति के अनुसार देश विदेश घूमती हैं । भले ही उसने यह बात मजाक के तौर पर कहा हो लेकिन जहां तक मैं अपने आस पास देखती हूँ तो महानगरों और  कुछ अपवादों  (जिनके  बच्चे उसी शहर में नौकरी करते हो)  को छोड़कर  कमोबेश हर घर की यही स्थिति है ।हालांकि स्त्री शिक्षा के कारण हुई इस प्रकार के बदलाव को हम सुखद ही  कह सकते हैं  ।पिछले दो सालों से लोकडौन की वजह से कितने ही बच्चों ने सालों बाद अपना लंबा समय घर में बिताया  लेकिन ये स्थिति तो 100 सालों के बाद आती हैं और भगवान न करें कि ऐसा बार बार हो । इस बारे में जहां तक मैं अपना बचपन याद करती हूं तो पहली स्मृति मात्र दो कमरों के एक घर की है जो हमेशा संबंधियों से भरा होता था ।उसके बाद हम पापा को यूनिवर्सिटी से मिले फ्लैट में आए जहां गिनती के तीन छोटे छोटे कमरे थे ।वहां भी हमें पढ़ने के लिए भी  जगह कम पड़ती थीं । एक चाचा की नौकरी ,दीदी की शादी वहां से हो गई। उसके बाद हम अपने मकान में आ गए जहां हमारे लिए यथेष्ट जगह थी लेकिन अगले साल जहां छोटे चाचा को नौकरी मिली वहीं भइया पढ़ाई के लिए दिल्ली चला गया और उसके अगले साल मेरी शादी हो गई ।उस घर को पापा ने कभी  भइया की शादी के कारण और कभी  दूसरी दिक्कतों के कारण पहले से और बड़ा और सुविधाजनक  बना लिया। लेकिन इन सब के बावजूद हम तीनों भाई बहन  साल में एकाध बार ही  अधिक नहीं जा पाते थे ।वजह कभी छुट्टियों की कमी या कभी अन्य परेशानी । शुरू के दिनों में पढ़ाई के कारण पापा ने छोटे भाइयों को अपने साथ रखा वो भी धीरे धीरे अपनी नौकरी और अपने परिवार में व्यस्त होते गए और बड़े से घर में माँ पापा अकेले ।उन दिनों जाने पर अक्सर माँ कहती कि जब जगह की जरूरत थी तो उसकी कमी थी और अब खाली घर की साफ सफाई से परेशान हो जाती हूं । तीन साल पहले वो क्रम भी खत्म हो गया जबकि पापा का देहांत हो गया ।साल में कभी दो महीने और कभी चार महीने माँ ने नौकरों के भरोसे वहाँ रहने की कोशिश की लेकिन कोरोना के कारण पिछले साल से मुंबई में भइया के पास और कई कमरों वाला घर सबकी राह में ।आज ये स्थिति मात्र मेरे घर की नहीं बल्कि हर दूसरे घर की है ।पहले के लोगों के पास पारिवारिक जिम्मेदारियों और अन्य कारणों से अक्सर पैसों की कमी होती थी तो वे अपनी शुरुआती दिनों में बड़े घर के बारे में सोच भी नहीं सकते थे और जब वार्धक्य में पैसे की सुविधा होती और अपने बच्चों के लिए सुविधापूर्ण घर बनाते तब तक बच्चे भी बच्चे वाले हो जाते हैं ।मेरे इस पोस्ट को नकारात्मक न समझे क्योंकि बच्चे आगे बढ़े अपनी जिंदगी में उन्नति करें ये तो हर माता पिता का सपना होता है ।

Saturday, 12 June 2021

पिछले साल सितंबर 2020 से नए कृषि अध्यादेश के बाद किसानों की  समस्या मुख्य  धारा  में आई  जबकि हकीकत में एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 से लेकर अब तक किसानों के  विरोधों में 5 गुना वृद्धि हो गई है । 2017 में 15 राज्यों और 9 केंद्र शासित प्रदेशों में यह संख्या  34 थी जो बढ़कर 2021 में 165 हो गई ।  आज देश में हर रोज किसान और कृषि मजदूर  28  किसानों के  द्वारा किए गए आत्महत्याओं की संख्या बढ़कर 5959समें 4324 कृषि मजदूर शामिल थे यह एक दुखद प्रसंग है कि हमारे देश में दिनोंदिन  कृषि मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही है इनमें  52% प्रतिशत कृषि मजदूर सिर्फ  बिहार केरल और पांडिचेरी में है।हाल के मात्र तीन वर्षों में  किसानों के विरोधों में हुए पाँच गुना वृद्धि के यह कारण हो सकते हैं
,रीढ़ कही जाने वाली कृषि मजदूरों की किसानों की ऐसी क्या समस्या है कि हर दिन  28 किसान आत्महत्या क विरोध विरोधर रहे हैं जिसके मुताबिक 2019 में किसा ््क्षा््क्  :- हमारेदेश में किसानों की  अशिक्षा बड़ी भूमिका निभाती है जिसके कारण सरकार द्वारा दिए गए बैंकों ऋण संबंधी  सुविधाओं को किसान समझ नहीं पाते और अक्सर महाजनों के जाल में फंस जाते हैं । महाजनों के द्वारा  ऋण देने की दर काफी ऊंची रहती है वही उनकी किताब में भी काफी गड़बड़ी रहती है इसके द्वारा किसान मजबूरन के जाल में फंसते जाते हैं  और   और उनके गलत हिसाब के कारण किसानों की जमीन उनके हाथ में चली जाती है और वह किसान से   कृषि मजदूर में बदल जाते हैं ।
2. सरकार की गलत ऋण देने की नीति स्वतंत्रता के बाद से कई पंचवर्षीय योजनाओं में ऋषि को प्राथमिकता दी गई और प्राय हर योजना में किसानों को ऋण देने की व्यवस्था की गई लेकिन कि सरकार की गलत नीतियों के कारण केंद्र सरकार के पारित होने के बावजूद वह रिंग किसानों की पहुंच से दूर ही रहे नतीजा यह हुआ की कई बार रेल लेने के बाद भी समझना पाने की स्थिति में किसान उन दिनों का भुगतान नहीं कर पाए और आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए।
3. बड़े व्यापारियों और दलालों का वध बढ़ता हुआ वर्चस्व कई सारी सरकारी योजनाओं के बावजूद किसानों की स्थिति कई दशकों के बाद ज्यों की त्यों बनी हुई है इसका मुख्य कारण बड़े व्यापारियों और दलालों का बढ़ता हुआ वर्चस्व है एक रिसर्च के अनुसार कृषि उत्पादों का मात्र 6% ही मंडी तक पहुंचाता है जिसका फायदा शाम को मिल पाता है और 94% उत्पाद या तो बड़े व्यापारियों के चला जाता है ऐसे में किसानों की स्थिति बनी रहती है।
4. नया किसान अध्यादेश जून 2020 में सरकार ने 3 नियम वाला नए किसान बिल के अध्यादेश को पेश किया जिसका पूरे देश के किसानों ने जमकर विरोध किया इस नए बिल में तीन बातें  मुख्य हैं । पहले कानून के अनुसार जहां जहां किसानों को किसानों के साथ साथ व्यापारियों को भी आवश्यक वस्तुओं के संचयन की सुविधा दी गई है 1955 से पहले के बाद यह सुविधा केवल युद्ध और आपदा के समय ही थी ऐसे में किसानों का विरोध बढ़ने का की बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है । किसानों को इस बात का पूरा संदेह है की व्यापारी वर्ग आवश्यक वस्तुओं के संचयन के द्वारा किसान वर्ग को कृषि मजदूर बनने पर विवश कर देंगे।
इस अध्यादेश के दूसरे भाग को हम कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तौर पर देखा देख सकते हैं यह इस अध्यादेश का एक सकारात्मक पक्ष हो सकता है बशर्ते कि इसमें सरकार कुछ आवश्यक सुधार करें। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का सुझाव 2012 ईस्वी में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के द्वारा प्रस्तावित किया गया था इस नियम में सरकार के इस नियम की एक खराबी खानी है इसमें कृषि इसमें किसान और गांव के लोगों को शामिल नहीं किया गया अर्थात यह नियम बनाने से पहले किसी सर्वे रिसर्च के द्वारा गांव के गांव की स्थिति का ब्यौरा लिया जा सकता था अगर इसमें इसमें किसी विवाद हो किसान और कंपनियों के बीच विवाद होने के समय समझौते के लिए मंडी के अधिकारियों को शामिल ना कर मुखिया सरपंच आदि को शामिल करना किसानों के पक्ष में हो सकता है।
 


और जागता का:- हमारे देश म की  अशिक बड़ी भूमिका निभाती कारण सरकार द्वारा दिए गए बैंकों ऋण संबंधी  सुविधाओं को किसान समझ नहीं पाते और अक्सर महाजनों के जाल में फंस जाते हैं । महाजनों के द्वारा  ऋण दर काफी ऊंची रहती है वही उनकी किताब में भी काफी गड़बड़ी रहती है इसके द्वारा किसान मजबूरन के जाल में फंसते जाते हैं और उनके गलत हिसाब के कारण किसानों की जमीन उनके हाथ में चली जाती है और वह किसान से   कृषि मजदूर में बदल जाते हैं ।
2. सरकार की  ऋण प्रदान की गलत नीति स्वतंत्रता के बाद से कई पंचवर्षीय योजनाओं में ऋषि को प्राथमिकता दी गई और प्राय हर योजना में किसानों को ऋण देने की रकम को बढ़ाई  गई लेकिन गलत सरकारी  नीतियों के कारण केंद्र सरकार से पारित होने के बावजूद वे ऋण किसानों की पहुंच से दूर ही रहे ।नतीजन  कई बार ऋण लेने के बाद भी भुगतान की  स्थिति से अनभिज्ञ किसान ऋण न चुका पाने की हालत में आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए।
3. बड़े व्यापारियों और दलालों का वध बढ़ता हुआ वर्चस्व कई सारी सरकारी योजनाओं के बावजूद किसानों की स्थिति कई दशकों के बाद ज्यों की त्यों बनी हुई है इसका मुख्य कारण बड़े व्यापारियों और दलालों का बढ़ता हुआ वर्चस्व है एक रिसर्च के अनुसार कृषि उत्पादों का मात्र 6% ही मंडी तक पहुंचाता है जिसका फायदा किसान को मिल पाता है और 94% उत्पाद या तो बड़े व्यापारियों के चला जाता है ऐसे में किसानों की स्थिति बनी रहती है।
4.  तात्कालिक कारण नया किसान अध्यादेश जून 2020 में सरकार ने 3 नियम वाला नए किसान बिल के अध्यादेश को पेश किया जिसका पूरे देश के किसानों ने जमकर विरोध किया इस नए बिल में तीन बातें  मुख्य हैं । इस विरोध के अनुसार पहले तो किसानों ने पूरे दिल्ली की बॉर्डर को अलग-अलग जगहों पर जुलूस और घेराबंदी के द्वारा प्रदर्शन किया वही बाद में 26 जनवरी को विरोध दिवस मना कर पूरे पूरे दिल्ली में ट्रैक्टर के द्वारा प्रदर्शन करना चाहा। पहले कानून के अनुसार जहां जहां किसानों को किसानों के साथ साथ व्यापारियों को भी आवश्यक वस्तुओं के संचयन की सुविधा दी गई है 1955 से पहले के बाद यह सुविधा केवल युद्ध और आपदा के समय ही थी ऐसे में किसानों का विरोध बढ़ने का की बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है । किसानों को इस बात का पूरा संदेह है की व्यापारी वर्ग आवश्यक वस्तुओं के संचयन के द्वारा किसान वर्ग को कृषि मजदूर बनने पर विवश कर देंगे।
इस अध्यादेश के दूसरे भाग को हम कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तौर पर देखा देख सकते हैं यह इस अध्यादेश का एक सकारात्मक पक्ष हो सकता है बशर्ते कि इसमें सरकार कुछ आवश्यक सुधार करें। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का सुझाव 2012 ईस्वी में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के द्वारा प्रस्तावित किया गया था इस नियम में सरकार के इस नियम की एक खराबी खानी है इसमें कृषि इसमें किसान और गांव के लोगों को शामिल नहीं किया गया अर्थात यह नियम बनाने से पहले किसी सर्वे रिसर्च के द्वारा गांव के गांव की स्थिति का ब्यौरा लिया जा सकता था अगर इसमें इसमें किसी विवाद हो किसान और कंपनियों के बीच विवाद होने के समय समझौते के लिए मंडी के अधिकारियों को शामिल ना कर मुखिया सरपंच आदि को शामिल करना किसानों के पक्ष में हो सकता है।
इस बिल के तीसरे भाग के रूप में अपनी फसल को कहीं भी देश में बेचने की सहूलियत सरकार के द्वारा दिन की जाने वाली दे दी जाने को देखा जा सकता है उसके अनुसार लोग अपनी फसल को कहीं से कहीं देख सकते हैं।
इंदौर इन सभी कारणों से किसान बिल किसानों की सहयोग विरोध की संख्या में अब तक 5 गुना वृद्धि हो गई है किसानों के द्वारा किए जाने वाले विरोध में अब तक दो मंत्री भी सामने आए हैं जिन्होंने अपने-अपने इस्तीफा के द्वारा किसानों के विरोध का समर्थन किया है।

Monday, 7 June 2021

पिछले कोरोना महामारी के बाद ही हमारी  GDP घटकर  काफी निचले स्तर पर चली गईं थी।अर्थशस्त्रियों का यह मानना था कि  भारत में यह  गिरावट  और भी हो सकती थी अगर  देश को कृषि उत्पादनो ने संभाला न होता । इसी डावाडोल की स्थिति के बीच सितंबर में पहले लोकसभा फिर राज्यसभा में  कृषि अधिनियम बिल  पास किया गया जिसका राज्यसभा के  कुछ सदस्यों के  साथ साथ जिसमें किसानों ने जमकर विरोध किया  जो आजतक जारी है। वैसे तो पूरे देश के किसानों के द्वारा  इसका विरोध हो रहा है लेकिन इसके प्रमुख विरोध करने वाले राज्यों  में पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान  हैं और इस महामारी के बीच भी अपने प्रदर्शन को लगातार जारी रखे हुए रहे हैं ।अब  पहले जानने की बात है  किसान विधायक बिल में आखिर ऐसा क्या है कि किसानों को इस में अपना अहित  नजर आ रहा है जबकि इस विषय में सरकार का यह  कहना है कि इस अधिनियम की  सारी बातें किसानों के हित में है ।  
इस अधिनियम की सबसे  पहली कड़ी को एक बाजार एक मूल्य के रूप में देख सकते हैं।  इस अध्यादेश के द्वारा सरकार  किसानों को पूरी छूट देगी जिससे वो देश में कहीं भी अपने फसल को   बेच सकते हैं।इससे पहले देश में मौजूद करीबन 7000 कृषि मंडी के द्वारा हर बड़े और छोटे शहर में सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता था वहां मौजूद बिचौलिए के द्वारा किसान और व्यापारियों के साथ लेन देन होता था । ये बिचौलिए बाकायदा सरकार की ओर से नियुक्त किए जाते थे और इन्हे इस काम के लिए लाइसेंस  दिया जाता था और किसान निश्चिंत होकर अपनी फसल को बेचते थे।वैसे पहले भी  न्यूनतम समर्थन मूल्य के अलावा  किसान अपनी फसल  देश में कहीं  भी बेच  सकते थे ।अब यहां सरकार और किसानोंके बीच मतभेद की बात यह है कि जहां  सरकार का कहना है कि  अब न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ साथ हमने आपको पूरी आजादी दी है कि आप चाहे तो अपनी फसल को कही भी बेच ले  हमारी ओर से किसानों को   कोई दवाब  नहीं दिया जाएगा  । अब यहां किसानों की ओर से मुश्किल की बात यह है कि किसान इस बात से संदेह में है कि धीरे धीरे न्यूनतम गारंटी मूल्य खत्म हो जाएगा क्योंकि एक अरसे के बाद सरकार के पास  उसे चालू  रखने का कोई विशेष कारण नहीं है जबकि उसके लिए सरकार को कुछ नियमित खर्च करने पड़ते हैं कुछ गोदाम  रखने पड़ते हैं और उसके साथ-साथ और भी कई परेशानियां होती हैं  ।किसानों के लिए किसी दूरस्थ जगहों पर फसल बेचने का मतलब है अतिरिक्त परिवहन शुल्क वहन करना जो छोटे किसानों के लिए मुश्किल है । 
इस अधिनियम   की  दूसरी कड़ी है आवश्यक वस्तुओं का संरक्षण करने से संबंधित कानून , पहले आवश्यक वस्तुओं को संरक्षित करने के संबंध में एक सरकारी नियम हुआ करता था जिसके तहत दलहन चावल गेहूं इत्यादि आवश्यक फसलों को आप एक सीमा के बाद संचय नहीं कर सकते हैं । लेकिन इस अधिनियम के अनुसार किसी भी किसान को यह पूरी छूट होगी कि वह अपनी फसलो को जब तक  चाहे रख सकता  हैं और जब चाहे तब बेच  सकता  है। ये बात  सैद्धांतिक रूप से बिलकुल सही है लेकिन इस संदर्भ में किसानों का ये कहना है कि भारत जैसे देश जहां लगभग 80प्रतिशत  छोटे किसान हैं जिनके पास छोटे-छोटे खेत है और जिनके सालभर के खर्चे इन्हीं फसलों के सहारे बाकी होते हैं और इनके पास अपने फसलों को रखने के लिए न तो आर्थिक आधार है और न ही गोदाम की सुविधा ।इसके अलावा इस मुद्दे पर किसानों को इस बात की भी  संभावना लगती है कि बड़े व्यापारी  किसानों की फसल को  भविष्य के लिए रख लेंगे जो कि किसी किसान के लिए मुश्किल है कि यहां खरीदार ताकतवर हो जाएगा और बेचने वाला लाचार हो जाएगा।हालांकि सरकार की ओर से ऐसा नहीं कहा गया है न्यूनतम समर्थन मूल्य को बंद किया जाएगा । अगर हम इस मुद्दे पर सरकार की ओर से देखें तो सरकार का कहना है कि यह सारी बातें किसानों के हित में है ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके द्वारा किसानों को मुश्किल पड़ेगी । किसानों के अलावा कुछ राज्य सरकार भी इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि क्योंकि अगर अनाज की मंडियां बंद हो जाए तो अव्वल तो लाखों  मजदूर का रोजगार चला जाएगा दूसरी ओर राज्य सरकार का राजस्व  का भी नुकसान होगा।
इस अध्यादेश का तीसरे पक्ष है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अथवा अथवा व्यापारियों द्वारा ठेके पर किसानों के खेतों को लेना ,इसका सीधा मतलब यह हुआ कि व्यापारी किसानों को फसल होने से पूर्व भी उन फसलों के लिए कुछ पैसे तय कर देंगे और किसान अपनी खेती करेंगे। पुनः अगर देखा जाए तो यह व्यवस्था और किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है क्योंकि कितनी ही बार मानसून कमजोर होने पर अथवा बाढ़ आदि की हालत में ये किसान के लिए लाभदायक है ।
लेकिन किसानों को की ओर से इस अध्यादेश पर आशंका व्यक्त की जा रही है कि शुरू के कुछ वर्षों में ऐसा ठीक होगा लेकिन बाद में वे खरीददार उन फसलों को सस्ते में खरीद कर अपने गोदामों में अगले साल के लिए रख लेंगेऔर अगले साल किसानों को अपनी फसलों को औने पौने दामों में बेचना होगा क्योंकि हमारे देश में चंद किसान के पास ही अपनी फसल को स्टॉक करने की क्षमता है।   इसके अलावा  बहुत बार ऐसा होता है कि किसान बंपर फसल का उत्पादन करते हैं  तो बंपर फसल होने पर भी किसानों को इसका फायदा नहीं मिलेगा ।
इस प्रकार अगर हम दोनों पक्षों की बातों को देखें तो पता चलता है कि जहां सरकार इस अध्यादेश के द्वारा कृषि की उन्नति चाहती हैं।वहीं किसानों का कहना है कि इस अध्यादेश को कंपनियों के हितों को देखते हुए बनाया गया है ।यहां इस कानून बना कर कंपनियों को बाध्य किया जा सकता है कि वो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम मूल्य न दे । न्यूनतम समर्थन मूल्य में सुधार की यथेष्ट  आवश्यकता है ।किसी भी बाज़ार में बिचौलियों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि किसानों के लिए बाहरी बाज़ार को समझना मुश्किल होता है।इस प्रकार अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसी भी कृषि प्रधान देश में किसानों का सरकार से इस तरह का टकराव उस देश के लिए उचित नहीं है ।सरकार को जल्दी ही इस पर ध्यान देकर बीच का रास्ता निकलना चाहिए।

Saturday, 5 June 2021

आज विश्व पर्यावरण दिवस है । सरकार अपने साथ साथ लोगों से भी  अपील करती है कि वो  पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए पेड़ लगाए ।धीरे धीरे लोग गाँवों से शहरों में  आए और बड़े बड़े घरों की जगह अपार्टमेंट्स में रहने लगे ।पेड़ों और पर्यावरण बचाने संबंधी शौक को घरों के  बॉलकोनी में  गमलों में छोटे छोटे पौधों को लगाकर पूरा करने लगे ।तीन साल पहले हमने अपने अपार्टमेंट के पेंट होने के बाद उन पेंट के डब्बों में अपार्टमेंट के छोटे छोटे बच्चों से कुछ पेड़ों को लगवाया था ।किस्मत से उनमें से कुछ पेड़ लग गए और कंक्रीट के इस जंगल में थोड़ी बहुत हरियाली आ गई ।इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने पिछले lockdown में छोटी सी कोशिश की ।हमारे अपार्टमेंट के पिछले हिस्से में लगभग 5 फ़ीट चौड़ी ×100 फीट जमीन  है । जिसका इस्तेमाल  खाली होने के कारण गत बीस सालों से मात्र कचरा फेंकने के काम आ रहा था ।साल में दो तीन बार उसकी सफाई कराई जाती लेकिन कुछ ही दिनों में उसकी फिर से वैसी ही हालात हो जाती थी । पिछले लोकडौन में हमने(हम दोनों पति पत्नी ने) धीरे धीरे उस जमीन की सफाई का काम शुरू किया  और उसमें छोटे छोटे फूलों के पौधों को लगाया ।शुरू के दिनों में हमें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा जब लोगों के कूड़ा फेंकने की आदत के कारण हमें एक ही हिस्से को बार बार साफ करना पड़ता था लेकिन धीरे धीरे उस गंदी पतली गली में लोगों ने अपने आप कूड़ा फेकना बंद कर दिया और गर्व के साथ कह सकती हूं  आज उस गली में जहां अड़हुल ,गेंदा जैसे मौसमी फूल खिलने लगे  हैं वहीं पपीता और करी पत्ता के पेड़ भी लग गए हैं  और उस छोटी सी गली को हमने हरा भरा कर दिया हालांकि ये बहुत छोटी सी जगह है लेकिन किसी भी  बड़े काम की शुरुवात छोटे से ही होती है । 
यहां एक बात ध्यान देने की है कि मात्र घरों के अंदर या छतों पर गमलों में फूलों के पौधों को लगा कर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकते बल्कि  अपार्टमेंटस में नीचे के कुछ हिस्से या घरों  के  आँगन में पेड़ों को थोड़ी सी जगह जरूर दें अन्यथा थोड़े दिनों के ऑक्सीजन की कमी ने हमें चेतावनी दे दी है।


Monday, 24 May 2021

भारत  में अगर कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाए तो धान (चावल) लोगों का  प्रमुख भोजन है । धान की खेती का इतिहास संभवत मानव सभ्यता के इतिहास के साथ ही जुड़ा है।दुनिया में धान के उत्पादन में चीन के बाद भारत  दूसरे नम्बर पर आता है ।धान या किसी भी अन्य फसलों के विषय में मेरी सबसे पहली किसान भाइयों को यह सलाह  है कि अमूमन हर जिले में सरकार की ओर से कृषि सहायक केंद्र मौजूद हैं जहां फसल संबंधी  विषयों पर  करीब करीब मुफ़्त सलाह दी जाती है ।वैसे इस तरह के निजी केंद्र भी हर छोटे बड़े जिले में मौजूद है । इन केंद्रों में किसानों को  मिट्टी की तैयारी से लेकर फसल की कटाई  तक के संबंध में जानकारी दी जाती  है । बुआई से पूर्व मिट्टी परीक्षण करवानी चाहिए । धान की खेती के लिए दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है । वैसे धान के उपज की अवधि110 दिनों से145 दिनों तक की होती है ।ये अवधि धान की किस्म पर निर्भर करती है। चूँकि धान की खेती में पानी बहुत जरूरी है इसलिए  बरसात शुरू होने से बाद ही इसकी खेती शुरू करनी चाहिए ।वैसे अब समृद्ध किसानों ने बोरिंग के द्वारा बरसात वाली जरूरत को अपने साधनों से पूरा करने की कोशिश कर ली है ।प्रथम चरण के अंतर्गत बीजों के लिए सबसे आवश्यक होता है  कीड़ों और दीमक  से बचाव । इसमें गोबर का खाद हर जगह की मिट्टी के लिए उपयुक्त है लेकिन अन्य रासायनिक उर्वरकों को  विशेषज्ञ की सलाह से ही डालना चाहिए  जिससे कम लागत में अधिक फसल मिले ।ध्यान देने लायक बात है कि  धान की खेती में कीटनाशक का प्रयोग कई चरणों में किया जाता है ।पहले चरण के अनुसार बीजों में फूल आने के बाद ही कीटनाशक का प्रयोग किया जाना चाहिए ।  वैसे तो किसी भी तरह की  खेती के लिए मानव श्रम सबसे अधिक जरूरी है लेकिन जब बात धान की आती है तो इसमें बुआई से लेकर खर पतवार तक के लिए लोगों की काफी जरूरत पड़ती है। वैसे इस क्षेत्र में अब काफी प्रगति हो चुकी है और लोगों का काम मशीनों और खर पतवार के लिए दवाओं का प्रयोग किया जाता है । धान के पौधों को भरपूर पानी की जरूरत होती है जो इसके फसल के दौरान बरसात से होने वाले बारिश के द्वारा पूरी होती है ।किसानों को मेरी यह सलाह है कि खेतों की तैयारी में मजबूत मेड़ों के निर्माण पर भी विशेष ध्यान दे  क्योंकि इसका निर्माण फसल के रोपाई से पहले हो जानी चाहिए।  आज वैज्ञानिकों ने धान के अनेक उन्नत किस्म के बीजों को उपलब्ध करवा दिए है । जो  हमारे किसान भाइयों को  उनके मेहनत का पूरा फल दे । पौधों की अवधि पूर्ण होने के बाद  इसकी कटाई में भी सही समय का आकलन करना चाहिए ।वैसे युग ने नई करवट ले ली है और मशीनों की मदद से उन्नत खेती कर हमारे किसान भाई समृद्धि पा रहे हैं ।जरूरत है आज नई पीढ़ी के लोगों की ,जो तकनीकी रूप से शिक्षित होकर  कृषि कार्यो के लिए आगे आए ताकि हमारा देश विभिन्न फसलों के मामले में आत्मनिर्भर बन सके ।

Saturday, 15 May 2021

12मई की शाम सोनी ने msg दिया  पिंकी ,पापा चले गए। पापा मतलब  मेरे जन्म से बहुत पहले से ही हमारे परिवार के साथ जुड़े हुए  हमारे स्नेहिल मिश्रा चाचा (Dr S. P. Mishra) । सिस्टर शिवानी कहती हैं हमारी जीवन में कुछ हस्तियां ऐसी होती है जिसके साथ कोई रक्त  संबंध न रहने पर भी वो किसी अपने से अधिक प्रिय लगता है बस कुछ इसी तरह की डोर उस घर से बंधी हुई थी । वैसे तो हमारा पूरा परिवार ही उस परिवार के बहुत करीब था लेकिन मेरी तो सुबह शाम और हर छुट्टी ही वही बीतती थी शायद इसका कारण मेरा और सोनी (चाचाजी की बेटी) का हमउम्र होना हो ।  याद आता है बिल्कुल बचपन की धुंधली यादें जब चाचाजी हमें छोटी छोटी पहेलियों और अत्यंत मनोरंजक कहानियां सुनाते थे उसके बाद जैसे जैसे  उम्र बढ़ी चाचाजी के साथ "उसने कहा था","हार की जीत" जैसी ज्ञानवर्धक  कहानियों को सुनना याद है वहीं जाड़े  गर्मी की छुट्टियों में  बैठकर  Greetings बनाने और बहुत सी  बातें जो आज के बच्चों को मूल्य के हिसाब से  भले ही तुच्छ प्रतीत हो लेकिन अब  स्कूलों में समर कैंप में कुछ इस तरह की भी  activity करवाने की बात  सुनने में आती  हैं जो हमने चाचाजी के कारण वर्षों पहले कर ली थी ।शायद ही बचपन की कोई ऐसी समस्या रही हो जिसका समाधान उनके पास नहीं  रहा हो । समय के साथ साथ दोनों परिवार बरियातू वाले मुहल्ले को छोड़कर एक साथ खरीदे गए हरमू वाले नए मकानों  में आ गए ।इसी बीच बहुत सी अच्छी बुरी बातें दोनों परिवार में हुई पर दोनों  साथ मे बने रहे । दीदी की शादी और मेरी शादी दोनों में वे हमारे गाँव गए ।किसी भी संस्कृति को समझना उनकी आदत थी ।हर उम्र के लोगों से बात करना उन्हें प्रिय था और लोग भी उनसे बातें करने को  उत्सुक रहते थे फिर चाहे वो किसी भी उम्र के हो ।   दीदी की शादी में उन्होंने हर एक बात को समझना चाहा फिर चाहे वो  केले के तने से बनाए जाने वाले पत्तल  जो  सिर्फ मिथिला के बारातियों को खिलाने के लिए व्यवहार में लाया जाता है जैसी छोटी सी बात ही क्यों न हो। किसी एक  बाराती के द्वारा 150 रसगुल्ले खाए जाने वाली घटना से इतने चकित हुए कि उन्होंने बाकायदा उस आदमी का साक्षात्कार ले डाला । उस विवाह से संबंधित एक घटना  जिसकी चर्चा अकसर मिलने पर चाचाजी किया करते थे ।बात ऐसी है कि हमारे मिथिला के कुछेक गांव ऐसे है जिनका नाम कोई भी  मैथिल सुबह सुबह नहीं लिया करते हैं या तो उसका नाम खाने  पीने  के बाद लिया जाए अथवा उनके बदले छद्म नामों से काम चलाए जाते हैं ।परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि दीदी की ससुराल सुबह नहीं लिए जाने वाले गाँवो में एक था इस बात ने चाचाजी को बेहद हँसाया कि गाँव के नाम सुबह लेने भर से दिनभर  खाना नसीब नहीं होता !बाद में वो अकसर मुझसे पूछते कि तुम्हारे ससुराल के साथ कोई ऐसी बात तो नहीं । 
शादी होने के बाद पहली डिलीवरी और सर पर hons की परीक्षा ।ऐसे में statistic की कठिनता को चाचाजी ने  इतने सरल ढंग से पढ़ा दिया कि सारे problemsही  खत्म हो गए ।
सितंबर95 , जब पापा को पहला heart attack आया मेरी बड़ी बेटी सिर्फ तीन महीने की थी उसे लेकर जब रांची पहुंची तो पापा  हॉस्पिटल में और मैं साधिकार  चाची के घर । ऐसे समय में मैंने कभी उनकी किसी भी परेशानी को नहीं समझा और अधिकार के साथ उनके पास जाती रही।ये अधिकार हमारे बच्चों के लिए वैसा ही  रहा।  बाद के वर्षों में चाचाजी भी कुछ अस्वस्थ रहने लगे लेकिन फिर भी उन्हें किसी भी मुश्किल की घड़ी में अविचल पापा के साथ खड़ा पाया । 2.5साल पहले जब  पापा की गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तो मैं उन्हें पटना लाने रात की बस से रांची गई उस अहले सुबह की घटना मुझे आज भी भावविह्वल कर देती है ।  चार बजे की सुबह जबकि  ठीक से पौ भी नहीं फटा था मेरे बस से उतरने से पहले चाचाजी ऑटो लेकर खड़े थे। उसके बाद भी  कभी पापा की तबीयत थोड़ी सी नासाज़ हुई जब भी माँ पूछती बच्चों को खबर कर दूँ क्या ? पापा कहते नहीं वैसी कोई बात नहीं बस मिश्राजी  को फोन कर दो और हम तीनों भाई बहन  आश्वस्त ।पापा को डॉक्टर से दिखलाने जब पटना लाई  हर दिन दूरी के बावजूद अभिवावक के रूप में  चाचाजी को अपने साथ पाया । समय का खेल ,पापा और चाचाजी ने  साथ साथ लंबे समय तक morning walk करते हुए अपनी पारी समाप्त कर ली ।जब जब जाड़े और गर्मियों की छुट्टियों आती है चाहे बेटियां स्कूल से निकल गई हो और उन छुट्टियों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़े  लेकिन कहीं मन में आता है रांची जाऊँगी ,एक दिन मिश्रा चाचा के घर जाना होगा वहां शायद चाची से कहकरअरसा और धुसका(दोनो ही छोटानागपुर के डिस) खाऊँगी
 लेकिन धीरे धीरे  रांची हमारे हाथों  से दूर होता चला जा रहा है  या यूँ कहूं कि "बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए 😢😢

Tuesday, 11 May 2021

कोरोना की दूसरी लहर अपने प्रचंड रूप में आ चुकी है ।  आपदा के साथ साथ आए दिन ऑक्सीजन, दवाओं और इंजेक्शन की कालाबाजारी और जमाखोरी की बात सुनती देखती हूँ खैर इन्हें किस  नेता का संरक्षण प्राप्त है या इनकेपीछे कौन सी राजनीतिक पार्टी काम कर रही है ये जानने में मेरी न कोई  दिलचस्पी है और न मैं राजनीति को समझती हूं ।लेकिन इन बातों से परे मैं अपने आस पास बहुत से ऐसी बातें हैं जिसका कारण मात्र लोगों की लालच और स्वार्थपरता है । कोरोना काल में ऑनलाइन क्लासेज और WFH को वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में शुरू की गई। जिसे विद्यार्थियों और ऑफिस के कर्मचारियों के द्वारा खुले दिल से अपनाया गया । धीरे धीरे कोरोना की अवधि बढ़ती गई और इसके साथ ही बढ़ती गई ऑफिस और स्कूल  प्रबंधन के द्वारा अपने मातहतों से अधिक से अधिक काम लेने की प्रवृत्ति ।मैं अन्य शहरों के बारे में नहीं जानती लेकिन मेरे शहर में विगत एक साल से प्राइवेट स्कूल शिक्षकों के वेतन में मनमानी कटौती की जा रही है ।इसके अलावा तो कई स्कूलों ने 50+ के शिक्षकों को एकाध महीने के वेतन के साथ निकाल भी  दिया ।मजे की बात यह है इसमें राजधानी के प्रतिष्ठित कहे जाने वाले प्राय सभी स्कूल शामिल हैं । शिक्षकों के कार्य के घंटों में किसी संडे का प्रावधान नहीं है ।  गौरतलब है कि कोरोना के घटते मामले के बीच इन शिक्षकों ने एक ही दिन में ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों की जिम्मेदारी भी निभाई थी । अब जरा स्कूल प्रबंधन की ओर गौर किया जाए । किसी भी स्कूल  ने इस अवधि में फीस न लेने का कोई प्रावधान नहीं रखा है ।इसके साथ अव्वल  तो राजधानी के छोटे से छोटे स्कूल भी ठोस आर्थिक आधार पर टिके हुए हैं ।  कोरोना काल में बहुत से स्कूलों ने guard ,चपरासियों और सफ़ाई कर्मचारियों की संख्या में  बेहद जरूरी को ही  कायम रखा है ।इसके साथ ही बिजली,साफ सफ़ाई पर होने वाले खर्च वर्तमान में पहले के मुकाबले  नगण्य है ।  ऐसे में जहां सभी स्कूल दोनों ही तरफ से कमा रहे हैं वहीं शिक्षक बेरोजगारी के लंबी कतार के कारण लगी हुई नौकरी किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहते हैं और किए जाने वाले किसी भी मनमानी को भुगत रहे हैं और नौकरी बचा पाने  के कारण किसी भी तरह से आवाज़ नहीं उठा पा रहे हैं । पिछले एक साल से इस महामारी ने वैसे ही पढ़ाई का खिलवाड़ बना दिया है जिसके साथ  विद्यालयों की इस गलत तरीके के कारण निश्चय ही शिक्षकों की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा।जिसका परिणाम बच्चों पर पड़ेगा। संभवत  इस संबंध में मेरी निर्भीकता का कारण मेरा किसी भी तरह से स्कूल से जुड़ाव न होना है । मैं जानती हूं मेरे इस प्रकार से लिखने का कोई लाभ नहीं ।लेकिन मैं फिर भी  लोगों से अनुरोध करती हूं कि आपदा में अवसर न ढूढ़ें । कोरोना काल में होने वाले मौत के बावजूद भी लोगों की गलत तरीके से धन संग्रह की प्रवृत्ति खत्म नहीं होती ।गीतकार शैलेंद्र के बोल"तुम्हारे महल चौबारे यहीं रह जाएंगे सारे ,अकड़ किस बात की है प्यारे "😢😢।

Monday, 10 May 2021

कोरोना की दूसरी लहर अपने प्रचंड रूप में आ चुकी है ।  आपदा के साथ साथ आए दिन ऑक्सीजन, दवाओं और इंजेक्शन की कालाबाजारी और जमाखोरी की बात सुनती देखती हूँ खैर इन्हें कौन से नेता का संरक्षण प्राप्त है या इनके पीछे कौन सी राजनीतिक पार्टी काम कर रही है ये जानने में मेरी न कोई  दिलचस्पी है और न मैं राजनीति को समझती हूं ।लेकिन इन बातों से परे मैं अपने आस पास बहुत से लोगों को परेशान देखती हूं जिसका जन्म मात्र लोगों के लालच और स्वार्थ के कारण  ही हुआ है। इस तरह की आपदा के कारण ऑफिसों से लेकर स्कूल कॉलेजों में ऑनलाइन वर्क और ऑनलाइन क्लासेज की परंपरा शुरू हुई । यहां मैं  प्राइवेट स्कूलों से जुड़ी बातों की ओर  सबका ध्यान दिलाना चाहती हूं।इस संबंध में अन्य शहरों या कस्बों के बारे में मैं नहीं कह सकती अलR

लेकिन पटना के तमाम प्राइवेट स्कूलों में विगत एक साल से शिक्षकों के सैलरी को कोविड के नाम  कटौती की जा रही है ।यहां हैरानी की बात यह है कि राजधानी के तमाम प्रतिष्ठित स्कूल भी इनसे अछूते नहीं है । अगर शिक्षकों की काम के घंटों की ओर एक नजर डाली जाए तो अन्य ऑफिसों के WFH की तरह इसकी कोई सीमा नहीं, ध्यान देने की बात यह है कि पिछले साल कुछ समय के लिए स्कूल खुलने पर ये शिक्षक ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों सेवा दे रहे थे । अब ध्यान दिया जाए स्कूल प्रशासन की ओर । अव्वल तो शायद ही कोई 

Friday, 7 May 2021

 कहते हैं मुसीबत आती है तो अपने साथ अपने रिश्तेदारों को लाती है ।कुछ समय पहले छोटी बेटी के कोरोना की तयशुदा अवधि को पार करने पर राहत की थोड़ी सांस ही ले पाई थी कि कल सवेरे सवेरे पतिदेव पैर की मोच के कारण सूजे हुए पैर के साथ बैठ गए ।कल का दिन घर के कामों के साथ साथ हल्दी चूना ,प्याज के सेक और क्रेप बैंडेज बांधते हुए बीता इसके अलावा जिस जिस ने फोन पर जैसी सलाह दी उसका अक्षरसः पालन किया ,लेकिन नतीजा जस का तस ।रात में माँ ने फोन कर बताया कि ठंडे और गर्म पानी से सेको वो भी किया लेकिन सासुमां के वॉकर पर लगड़ाते हुए पैर की स्थिति वैसी ही रही और इतनी तकलीफ के बाद भी कोविड के बढ़े हुए रूप के कारण दिनभर  हॉस्पिटल जाने की हिम्मत नहीं हुई  लेकिन आज सुबह हम दोनों ने करो या मरो के सिद्धांत पर LNJP हॉस्पिटल राजबंशी नगर जाने का फैसला किया जो कि बिहार सरकार के द्वारा हड्डी अस्पताल के रूप में विकसित किया गया है। वहां जाने से पहले हम काफी डरे हुए थे क्योंकि वहां कोविड की जांच और वैक्सीनेशन भी किया जा रहा है लेकिन वहां से आने के बाद वहां की व्यवस्था और बरते जाने वाले ऐतिहात को 10 में 10 नहीं तो 9 नम्बर जरूर दिया जाना चाहिए। जहां जांच वैक्सीनेशन को अस्पताल से बिल्कुल अलग रखा गया है वही डॉक्टर से लेकर गार्ड ,नर्स और हर एक स्टाफ मास्क और जरूरी social distancing का पालन करते हुए दिखे । कोरोना की इस विभीषिका को हॉस्पिटल जैसी जगह पर बरती जानी वाली ऐसी सावधानी के द्वारा  निश्चित रूप से मात देंगे ।तो हम सब को सोचना पॉजिटिव है और  रिपोर्ट नेगेटिव लाना है।
सबसे बड़ी बात कि पैर में जोर से मोच ही   आई है शुक्र है भगवान का पैर सलामत है ।

Thursday, 15 April 2021

याद आती है शादी के बाद की मिथिला के बसिया पाबनि की सुबह ।सुबह उठकर आँगन में निकली ही थी कि दादी माँ ने  मिट्टी के लोटे नुमा बर्तन से पानी अपने हाथ की अंजुलि में भरकर मेरे माथे पर डाला और दूसरे हाथ से पंखा झल दिया । अचानक तन और मन दोनों ही शीतल हो उठे। पल के लिए मैं समझ ही नहीं पाई कि ये क्या हो रहा है फिर बगल में खड़े पतिदेव की देखा देखी दादीमाँ को प्रणाम किया और उनसे "खूब जुरायल रहूँ "का  आशीर्वाद भी पाया ।उसके बाद मैंने जाना कि न सिर्फ हम मनुष्य  बल्कि आज के दिन चूल्हे से लेकर घर के कोने और पेड़ पौधों को भी जुराया जाता है ।शादी से पहले माँ को अपने से छोटों को जुरायल रहने का आशीर्वाद देते तो सुना था लेकिन उस दिन की सुबह  प्रत्यक्ष रूप से जुड़ाना देख लिया।परंपरा चलती रही और दादीमाँ के हाथों जुरायल रहूँ का आशीर्वाद पाती रही ।मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करती हूं कि मैं अपनी दादीमाँ (ददिया सास) की लाड़ली बहू थी तो बाद के वर्षों में वो हमेशा मुझे कहती कि जैसे तुमने हमसब को जुराया है भगवान तुम्हें जुराए रखेगा । समय बीतता गया दादीमाँ स्वर्गवासी हुई और उनकी जगह माँ(सास) हर साल जुड़ाने का आशीर्वाद ठंडे पानी और पंखे के साथ करती रही । इस साल सासु माँ के बाद का पहला साल रहा जब किसी ने माथे पर ठंडे पानी के साथ आशीर्वाद नहीं दिया ।किसी को किसी भी तरह  जुड़ाना कितना भावनात्मक होता है वो बाद के वर्षों में समझ गई ।याद आता है "फ़िल्म तीसरी कसम" का वो डायलॉग मन समझती है न आप बस उसी तर्ज पर जुड़ाना समझते है न आप !

Saturday, 6 March 2021

पिछले दो ढाई साल हमारी जिंदगी के उथल पुथल वाले साल कहे जा सकते हैं ।कारण ढाई साल पहले पापा का देहांत और सात माह पहले सासु माँ का निधन ।जहां पापा के जाने से ऐसा लगा कि रांची नामक स्थान हमारे हाथों से धीरे धीरे फिसलती जा रही  है वही हर जाड़े गर्मी की छुट्टियों से पहले  सुबह आने वाली फोन की घंटी ने भी  बंद  कर दिया। वहीं सासु माँ के निधन  ने मुझे अचानक एक बड़ी जिम्मेदारी का अहसास करा दिया और मात्र चंद महीनों में काफी दुनियादारी सीखा दी। हालांकि माता पिता के जाने की कमी  से बेटे बेटी काफी व्यथित होते हैं लेकिन इस बारे में मेरी ये व्यक्तिगत  धारणा है कि पति या पत्नी के जाने से एक उम्र के बाद धीरे धीरे  बाल बच्चे अपनी दुनिया में मग्न हो जाते हैं और मात्र पति या पत्नी, जिसने अपने साथी को खोया है, ही प्रभावित होता है। संयुक्त परिवार के विघटित होने , शिक्षा के प्रसार और रोज़गार के कारण कमोबेश हर दूसरे परिवार में शुरू के बीस पचीस वर्ष के बाद घर में सिर्फ पति पत्नी ही बच जाते हैं जबकि पहले के समय में मात्र बेटी ही विवाह के बाद माता पिता से दूर होती थी और परिवार का आकार बड़ा होने के बेटों के नौकरी के कारण बाहर जाने के बाद भी एकाध भाई माता पिता के साथ बना ही। रहता था । ये तो सर्वविदित है कि संयुक्त परिवार के विघटित होने का खामियाजा बच्चों और बूढों को ही भुगतना पड़ता है । अब सवाल आता है वैसे बुजुर्गों का जो अपने उम्र के चौथेपन में अपने साथी को खो बैठते हैं और  अकेले नहीं रहने की हालत में अपने बच्चों के पास रहने जाते हैं । यहां मैं उन बुजुर्गों को सौभाग्यशाली कहूंगी जो अपने साथी का साथ छूटने के बावजूद  अपनी  ही  बिताई जगह में अपने बच्चों के साथ रहते हैं ।यहां बच्चों की ये लाचारी है कि वो अपनी नौकरी के कारण अपने माता पिता वाली जगह पर कुछ ही दिन रह सकते हैं । स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि कारणों से माता या अकेले पिता को अकेला नहीं छोड़ सकते हैं ।यहां हम सभी इस बात पर ही एकमत हो जाते हैं कि किसी भी वरिष्ठ को अकेला नहीं रहना चाहिए लेकिन इस जगह पर उन बुजुर्गों की स्थिति अपने जड़ से अलग किए गए पेड़ के सामान हो जाती है जो इस उम्र में अपने साथी को खोने के बाद उस जगह की यादों   से भी दूर हो जाते हैं । अपने ही बच्चों के साथ रहने के बाद भी उन्हें लगातार अपने बिताए समय और समाज की कमी महसूस होती हैं । 
इस परिस्थिति की अगर समीक्षा की जाए तो हर परिवार में कोई न कोई ऐसा सदस्य जिसे उस बुजुर्ग के आर्थिक सहायता की जरूरत हो मेरी जानकारी में कुछ लोगों ने इस प्रकार से बीच के रास्ते को अपनाया है लेकिन इसमें  बहुधा आपसी सामंजस्य की कमी से समस्या होती है। दूसरी ओर अगर हम गाँव के विषय मे सोच सकते हैं अगर कोई भी गाँव स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं से सम्पन्न हो तो वहां घरेलू सहायकों के साथ कई बुजुर्ग अपने जैसे लोगों के साथ रह सकते हैं ।अंत में  एक ऐसी जगह के बारे में कहना चाहूंगी जिसके बारे में आज लोग जाना तो दूर  सुनना तक पसंद नहीं करते हैं ।वृद्धाश्रम ,आज भले ही हम इसके संबंध में मात्र गलत धारणा पाले हुए हैं लेकिन हमारी  पीढ़ी के लोगों को इस अनछुए विषय में सोचना होगा ।अगर हम अन्य बातों में पश्चिम देशों का अनुकरण करेंगे तो हम इन विषयों पर भी सोचना होगा क्योंकि ये आने वाले समय की मांग है ।हालांकि कुछेक फिल्मों और किताबों में इसके अच्छे स्वरूप को भी दिखाया गया है लेकिन अब भी इसके बारे में ऐसी धारणा है कि सिर्फ बच्चों के दुर्दशा के कारण लोग यहां जाते हैं।  मात्र फिल्मों और समाज में फैले  नकारात्मक विचारों के कारण हम इसे दरकिनार नहीं कर सकते हैं ऐसी संस्थाएं ,निःसंतान  दंपत्तियों के साथ साथ  आने पीढ़ी के वैसे बुजुर्ग जिनके बच्चे रोज़गार के कारण उनसे दूर हैं  उनके लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बन सकती है ।