Thursday, 15 April 2021

याद आती है शादी के बाद की मिथिला के बसिया पाबनि की सुबह ।सुबह उठकर आँगन में निकली ही थी कि दादी माँ ने  मिट्टी के लोटे नुमा बर्तन से पानी अपने हाथ की अंजुलि में भरकर मेरे माथे पर डाला और दूसरे हाथ से पंखा झल दिया । अचानक तन और मन दोनों ही शीतल हो उठे। पल के लिए मैं समझ ही नहीं पाई कि ये क्या हो रहा है फिर बगल में खड़े पतिदेव की देखा देखी दादीमाँ को प्रणाम किया और उनसे "खूब जुरायल रहूँ "का  आशीर्वाद भी पाया ।उसके बाद मैंने जाना कि न सिर्फ हम मनुष्य  बल्कि आज के दिन चूल्हे से लेकर घर के कोने और पेड़ पौधों को भी जुराया जाता है ।शादी से पहले माँ को अपने से छोटों को जुरायल रहने का आशीर्वाद देते तो सुना था लेकिन उस दिन की सुबह  प्रत्यक्ष रूप से जुड़ाना देख लिया।परंपरा चलती रही और दादीमाँ के हाथों जुरायल रहूँ का आशीर्वाद पाती रही ।मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करती हूं कि मैं अपनी दादीमाँ (ददिया सास) की लाड़ली बहू थी तो बाद के वर्षों में वो हमेशा मुझे कहती कि जैसे तुमने हमसब को जुराया है भगवान तुम्हें जुराए रखेगा । समय बीतता गया दादीमाँ स्वर्गवासी हुई और उनकी जगह माँ(सास) हर साल जुड़ाने का आशीर्वाद ठंडे पानी और पंखे के साथ करती रही । इस साल सासु माँ के बाद का पहला साल रहा जब किसी ने माथे पर ठंडे पानी के साथ आशीर्वाद नहीं दिया ।किसी को किसी भी तरह  जुड़ाना कितना भावनात्मक होता है वो बाद के वर्षों में समझ गई ।याद आता है "फ़िल्म तीसरी कसम" का वो डायलॉग मन समझती है न आप बस उसी तर्ज पर जुड़ाना समझते है न आप !

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