Friday, 26 June 2020

किसी भी आर्थिक और सामाजिक संकट के समय मध्यम वर्गीय लोगों का तबका ऐसा होता है कि परेशान और  प्रभावित होते हुए भी सबकी नजरों से परे ही रहता है । विगत कुछ महीनों में प्रवासी मजदूरों के बेरोजगार होने की खबर प्राय सभी new channels और समाचार पत्रों में आई और कई जगहों पर संस्थाओं और नामचीन हस्तियों ने इनकी यथा संभव मदद करने की भी कोशिश की ।लेकिन इन सबके बीच ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो  सालों से अच्छी नौकरी करते हुए महानगरों में अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे थे ऐसे में अचानक से नौकरी चली गई और अचानक वे बेचारे की गणना में आ गए। उम्र के इस चौराहे पर सबसे कठिन तथ्य यह है कि इस बीच अच्छी सैलरी के भरोसे  कई लोगों ने EMI या कर्ज लेकर गाड़ी से लेकर मकान आदि ले लिया  है  और सामने बच्चों की पढ़ाई ,उनकी शादी ,बूढ़े माता पिता और अपना बुढ़ापा मुँह ताक रहा है। ये तबका ऐसा है कि ये सालों से ऑफिस में काम करने के इस तरह आदी हो गया हैं कि जीवकोपार्जन के लिए किसी अन्य काम को करने में असमर्थ होता हैं।  खैर इस तरह की परिस्थिति का अंदाजा भी शायद ही किसी ने लगाया होगा ।जीवन एक चक्र है वही  कुछ साल पहले  साल पीछे जाकर हमारे आस पास के कुछ ऐसे लोगों को देखे जिन्होंने  स्वेच्छा से  महानगरों की जिंदगी को नकारते हुए कुछ अलग तरह की जिंदगी को चुना और  उस समय सामाजिक अवहेलना को भी झेला ।आज मेरा ये पोस्ट कुछ ऐसे लोगों के लिए है जिन्होंने शायद  कभी अपने सपनों को पूरा करने के कारण या कभी पारिवारिक समस्याओं के कारण अपने ही गाँव या शहर में रोज़गार करने की ठानी औऱ आज न सिर्फ अपना बल्कि अपने साथ साथ बहुत से लोगों को रोजगार देने का भी काम कर रहे हैं । श्री गिरीन्द्र नाथ झा हमारे बीच की एक ऐसी ही हस्ती है जिन्होंने दिल्ली में उच्च शिक्षा पाने के बावजूद 12 साल महानगर में बिताने के बाद गांव के जीवन को चुना ।उनके बारे में कुछ भी कहना सूरज को दिया दिखाने के बराबर है ।आज अपने इलाके में  नशाबंदी ,शिक्षा और रोजगार के नए अवसर देने के लिए इनके द्वारा किया गया प्रयास काबिलेतारीफ है । महानगर में बसा एक पत्रकार जो किसान बन कर वापस आता है उसका शुरुआती सफर निश्चय ही काफी कठिन रहा होगा ।गांवों से पलायन रोकने के लिए इन्होंने भूमिहीनों को अपनी जमीन की साझेदारी में खेती करने की पेशकश की । अपने प्रारंभिक दिनों में मजदूरों के बच्चों को पढ़ाई और नई टेक्नोलॉजी के द्वारा  नशे के दुष्प्रभाव को समझाया और उन्हें  अपने घर को नशामुक्त करने की कोशिश करने की बात कही । गिरीन्द्र जी की पहल पर उन बच्चों का अपने पिता को नशे की गिरफ्त से निकलना बहुत बड़ी चुनौती थी ।आज हम या हमारे बच्चे घूमने को विदेश जाते हैं ,हम गाँव देखने को केरल के गाँव जाते हैं ऐसा क्यों? क्या हमारी खुद की धरा इतनी गई बीती है कि छुट्टियों के लिए भी बाहर का रुख अख्तियार करें ।ऐसे में हम जहां अपनी जगह से कट रहे हैं वही राजस्व भी बाहर जा रहा है ।इसी धारणा को बदलने के लिए गिरीन्द्र जी ने चनका रेसिडेंसी की स्थापना की । एक ऐसा गाँव जो हरियाली से भरा हो जहां आपने जिस प्रकार के ग्राम्य जीवन को जीना चाहा वो मिले शहरों की कोलाहल से दूर हो गाँवों का भोजन मिले और उसपर विशेष बात ये है कि टेक्नोलॉजी से जुड़ा हुआ हो ।आज गिरीन्द्र जी की इसी कोशिश के कारण विदेशों तक से लोग पूर्णिया जैसे छोटे शहर की आकृष्ट हो रहे उन्हें देखना है  रेणुजी की धरती को  ।जिससे  सहज रूप से पर्यटन को बढ़ावा मिलता है और क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है । अगर हमारे बीच इस प्रकार के लोग रहे तो गाँवों से शहरों का पलायन रुक जाएगा  और  महानगरों पर लोगों की अनावश्यक भीड़ भी कम होगी । मैं किसी को बाहर की नौकरी को छोड़ने या अपने भविष्य को दांव पर लगाने की सलाह हरगिज नहीं देती हूँ  लेकिन अपने बीच के कुछेक लोगों से कुछ सीखने की सलाह जरूर देती हूं ।मुझे मालूम है कि इस तरह के लोगों के बारे में कुछ भी लिखा जाना नाकाफ़ी है और इस बात की पूरी संभावना है कि मेरे द्वारा लिखी गई इन चंद लाइनों से उनके कार्य का अहम पहलू अनछुआ रह जाएगा लेकिन फिर भी अपने आने वाले कुछ पोस्ट में ऐसे ही लोगों के बारे में लिखने की कोशिश करूँगी ।मेरा अपने सभी फेसबुक मित्रों से ये आग्रह है कि अगर वो भी किसी इस तरह के व्यक्ति से परिचित हैं तो उनके बारे में  कमेंट बॉक्स में जरूर बताए ।

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