Thursday, 25 June 2020
कोरोना वायरस के मद्देनजर lockdown के समय बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए ।ऐसे बेरोजगारों में मात्र महानगर या विदेशों के प्रवासी लोग ही नहीं थे वरन इसका असर बिहार के अंदरूनी हिस्से अर्थात गाँवो में काम करने वाले शिल्पकार ,बुनकर और इस उद्योग से जुड़े हजारों की संख्या में मजदूरों की भी हैं हालांकि हमारे राज्य के कामगारों का यह हिस्सा इस आपदा से पहले भी काफी हद तक सरकार और लोगों की पारखी नज़र से उपेक्षित ही था या दूसरे शब्दों में ये कहा जाए कि इस प्रकार के शिल्पकार, बुनकरों और अन्य लोगों की आमदनी का स्रोत साल छह महीने में लगने वाली कला प्रदर्शनी थी अथवा कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के द्वारा इनके उत्पादों की खरीद थी जिसमें लाभ की अधिक मात्रा उन्हीं के द्वारा ले लिया जाता था लेकिन जब कोरोना आपद के समय इस प्रकार से होने वाली आमदनी भी बंद हो गई और ये भुखमरी के कगार पर पहुंच गए ।ऐसे में दाद देनी चाहिए उन्हीं संस्थाओं से जुड़े कुछ ऐसे लोगों को जिन्होंने इन जरूरतमंदों को एक नई दिशा देने और भविष्य के लिए भी आत्मनिर्भर बनाने की पहल की गई। श्रीमती वीना उपाध्याय से मेरी पहली पहचान लगभग 15 साल पहले मेरी पुत्री की अभिन्न सखी की माँ के रूप में हुई । बेटी के मुंह से कई बार मैंने सुना कि वे एक आईपीएस अधिकारी की अर्धागिनी होने के साथ साथ सृजनी फाउंडेशन नामक एक संस्था को चला रही है जो इस तरह के अन्य संस्थाओं से इतर कार्यरत है । इस आपदा के समय जब बेटी WFH के कारण मुंबई से पटना आई तो उसे मैंने वीनाजी के साथ जुड़ते हुए पाया । सीधी बात अगर कहा जाए तो डिजिटल इंडिया के तर्ज पर उन कामगारों को बिचोलियों से बचाते हुए खरीदारों के सीधे संपर्क लाने की कोशिश की गई ।इसके लिए उन्हें अपने सामानों की सही कीमत लगाने , उनकी सही फोटोज खींचने के लिए ट्रेंड की
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