Wednesday, 17 June 2020
14जून की दोपहर ,अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या करने की खबर से पूरा देश हिल गया वजह मानसिक अवसाद अथवा डिप्रेशन । यहां मैं कुछ ऐसा सोचती हूं कि शायद नियति ही उसे एक अति मेधावी छात्र होते हुए बॉलीवुड की ओर खींच कर ले गई थी या फिर उसे डॉक्टर की सलाह लेने में काफी देर हो गई और बीमारी काफी बढ़ गई। ये बात तो सर्वविदित है कि बॉलीवुड में काम करने वाले कलाकार काफी तनावपूर्ण जिंदगी जीते हैं और अकसर अवसाद का शिकार हो जाते हैं । स्वर्गीय सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद जिन काली सच्चाईयों से धीरे धीरे पर्दा उठ रहा है ऐसे में उनका अवसादग्रस्त होना लाजमी था ।ये बात तो सुशांत सिंह की है जो समय के साथ साथ हमारे जेहेन से खत्म हो जाएगी लेकिन ये मानसिक अवसाद क्या है जो जीवन के हर सुख होने के बावजूद लोगों को घुट घुट कर जीने पर विवश कर देता है । अगर आप अपने आसपास परिवार या मित्रों की ओर नज़र डालेंगे तो कई लोगों को इसके गिरफ्त में पाएंगे । मुझे लगता है कि इस बीमारी की सबसे बड़ी त्रासदी ये है कि ज्यादातर मामलों में शारीरिक लक्षण के अभाव में लोग इस बीमारी को समझ ही नहीं पाते हैं और न ही इसके इलाज की जरूरत समझी जाती है । किसी मानसिक मरीज की दुविधा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसकी तमाम तकलीफों को उसके अपने भी बदमाशी या गलती मान कर डांट डपट के द्वारा ही ठीक करने की कोशिश करते हैं ।जिस तरह हम किसी शारीरिक व्यधि से परेशान होते हैं उसी तरह हमें मानसिक व्यधि भी हो सकती है उसके परे हमारे समाज में किसी मानसिक रोगी को लोक लाज के भय से दिखाया तक नहीं जाता ।वैसे स्वीकृति के बाद भी किसी मानसिक रोगी के परिवार के लोगों की भूमिका काफी कठिन होती है । मेरे विचार से जैसे हम शरीर के खास अंग की तकलीफ के लिए उसके विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लेते हैं उसी तरह छोटी मानसिक तनाव या समस्या के लिए हमें इसके विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए ताकि समय रहते हम इसे ठीक कर सके ।इस प्रकार की समस्या को विशेषज्ञ की सलाह से कई बार समस्या बिना किसी दवा के मात्र बात चीत के द्वारा ही सुलझ जाती है । अन्य बातों में हम अकसर पश्चिमी देशों का उदाहरण लेते हैं तो वहां इस तरह की समस्याओं में मरीज निश्चय ही बिना किसी संकोच के डॉक्टर की सलाह ले लेते हैं वही किसी भी शारीरिक बीमारी जैसे बीपी या शुगर की तरह लोग इस व्यधि की दवा अगर लेनी भी पड़े तो लेते हुए सामान्य जीवन बिताते हैं । यह एक दुखद तथ्य है कि इस क्षेत्र में हमें चिकित्सा से अधिक सामाजिक तौर पर अधिक विकसित होने की जरूरत है ताकि लोग इस प्रकार की बीमारी के बारे में बिना कोई पूर्वधारणा बनाए इसके इलाज के लिए आगे आए ।
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