Tuesday, 20 February 2018


  आत्मा में ही परमात्मा का निवास है ।ये बात तो हम बचपन से ही सुनते आए हैं लेकिन बात की गूढ़ता तो बहुत बाद में  समझ मे आई । फिर चाहे वो  किसी को बातों की चोट पहुँचाने की हो या कोई दूसरा मसला ।कई बार आवेश में आकर हम किसी को हज़ार बातें सुना देते हैं और बाद में  घंटो तक पछताते रह जाते हैं ।लेकिन जब ऐसी भावना खत्म हो जाती है तो सामान्यतया ऐसा  कहा जाता है कि उसकी आत्मा मर गई है कोई भी व्यक्ति तब  तक गलत काम नहीं करता है जब तक उसकी आत्मा जिंदा हो ।उसी प्रकार जब हम किसी की मन की बात को पूरा करते हैं तो एक अलग प्रकार की तृप्ति उसके चेहरे पर आ जाती है  फिर चाहे वो किसी बच्चे को मनचाही खिलौने या चॉकलेट दिलाने की बात हो ,किसी गरीब को की गई मदद से हो या किसी बुजुर्ग के अकेलेपन के बाँटने की हो और इसी मन तृप्त करने के नाम पर हमारे यहाँ सत्तुवाइन के दिन  चूल्हे को बड़ी पूरी से लेकर पेड़ पौधे तक को पानी की नर्म फुहार के द्वारा तृप्ति काअहसास दिया जाता है ।तो क्या कहा जाए यहां तो हर कदम और हर पर्व भी इसी भावना से जुड़े हैं !

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