पिछले सफ्ताह एक शादी की रिसेप्शन में गई थी।आधुनिक विवाह चमक धमक से भरपूर । दुल्हन बहुत खूबसूरत ,लड़के लड़की की जोड़ी बहुत अच्छी।सभी उस पार्टी का मज़ा ले रहे थे ।उस पार्टी में मुझे एक लड़की बहुत पसंद आई वो है लड़के की बहन ।लड़के की बहन को भारतीय मानक के हिसाब से बहुत सुंदर नहीं कह सकते हैं उसने अपनी पसंद का बहुत ही लंबा फ्रॉक या आज कल की भाषा में कहे तो लहराता हुआ ड्रेस पहना हुआ था उस बच्ची की रंग की बात करें तो साँवला बल्कि काला ही कहेंगे लेकिन उसकी सबसे खास बात यह थी कि उसके चेहरे पर सदाबहार हँसी और आत्मविश्वास से लबरेज वो चेहरा आसानी से कई सुंदरियों को मात दे रहा था ।वो लड़की मेरी बेटी की घनिष्ठ सहेलियों में एक है इस लिए अकसर मेरे घर आती है और हर बार उसकी आत्मविश्वास से भरी बातें मुझे लुभा देती है ।एक तरफ वो प्यारी सी बच्ची अपनी रंग रूप की कमी को अपने आत्मविश्वास से झुठला रही थी और दूसरी ओर हमारे बीच के कई लोग अपनी एक छोटी सी कमी के कारण अपने तमाम गुणों को खो कर हीन भावना से ग्रसित हो जातेे हैं।इस बात से मेरा ध्यान अपने समाज के अधिकांश लोगों पर गया जो हर जगह सीरत से अधिक सूरत को महत्व देते हैं । आज भी क्यूँ गोरा रंग देखते ही हम मंत्र मुग्ध हो जाते हैं और विवाह के प्रस्ताव में सुंदरता को प्राथमिकता दी जाती है । अब सवाल है सुंदर किसे कहते हैं और उसका पैमाना क्या है ? कहने को तो ये बात कही जाती है कि भगवान की बनाई हर रचना अनुपम
लेकिन क्या सचमुच ऐसा होता है ? हम ये समझते हैं कि आदमी के गुण ही सर्वोपरि है और समय आने पर सुंदरता की ओर झुक जाते हैं ।इस बारे में मेरी एक परिचिता जो अपनी निजी जिंदगी में बहुत से सुंदर लोगों के दुर्व्यवहार को झेल चुकी है ,का कहना है कि मुझे सुंदर लोगों से नफरत है और जब अपने व्यवहार से कोई भी व्यक्ति किसी को दुखी कर दे तो उसका सुंदर रूप भी उस व्यक्ति विशेष के लिए कुरूप ही तो बन जाता है ।
Monday, 19 February 2018
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