Sunday, 3 September 2017

शायद नौंवी या दसवीं क्लास में हमने एक चैप्टर पढ़ा था On saying pleaseलेखक कौन था मुझे स्मरण  नहीं लेकिन जिस समय उसे पढ़ा वो बिना समझे ही पढ़ा लेकिन उसके संदेश को अब महसूस करती हूँ । कल सुबह सुबह मेरी अपनी काम वाली बाई से बहस हो गई और उसी दौरान मेरी बड़ी बेटी जो होस्टल में रहती है उसका फोन आ गया मैंने बिना किसी गलती के उसे  झिड़क दिया ।शाम में जब मैंने उससे फिर बात की तो उसने बताया कि मुझसे बात करने के बाद उसका अपनी रूममेट से  किसी छोटी सी बात पर अच्छी खासी बहस हो गईऔऱ जब बाई आज मुझसे अपनी गलती के लिए खेद जताते हुए कहने लगी कि मेरी कल अपनी बस्ती में बगलगीर से झपड़ हो गई तो मैंने आपको उल्टा सीधा कह दिया ।जब मैंने इस पूरी घटना पर गौर किया तो मुझे लगा कि  हमारे जीवन में इस तरह के गुस्से या तनाव का एक  चेन चलता है जो एक के बाद दूसरे पर चला जाता हैऔर सम्भवत  वही उस लेखक ने कहना चाहा था ।कई बार हम इसी के कारण  किसी व्यक्ति से ऐसा व्यवहार कर बैठते हैं जो हम सामान्य रूप से सोच भी नहीं सकते हैं या शायद इसी तनाव के कारण हम भी किसी के द्वारा उम्मीद से परे दुर्व्यवहार का शिकार हो जाते हैं और  कहते हैं कि कमान से निकला हुआ तीर और मुँह से निकले शब्द कभी वापस नहीं होते  तो क्या करें मात्र एक बार के भेंट या किसी के उम्मीद से अलग किए व्यवहार को अंतिम सत्य न माने औऱ दुबारा एक मौका जरूर दे।औऱ जहाँ तक अपने व्यवहार को सुधारने की बात तो मेरे अनुसार शायद इसमें आत्ममंथन और वाणी पर नियंत्रण  हमारी सहायता करें ।

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