The Never Never Nest यही नाम था उस कहानी का जो मैंने अपने इंटरमीडिएट में पढ़ा था। ये कहानी थी एक ऐसे नवविवाहित जोड़े के बारे में जो अपनी हर सामान को क़िस्त पर खरीदता है यहाँ तक की बच्चे की डिलीवरी की फीस भी। ऐसे में डॉक्टर उनके बच्चे को तब तक के लिए रख लेती है जब तक फीस कीआखिरी क़िस्त चूक न जाए। हर बात में विदेशी समाज हमसे आगे है फिर चाहे वो अच्छी बात हो या बुरी। जिस EMI ने बहुत तेजी से हमारे यहाँ प्रवेश पाया हैवहां वो आज से पच्चीस तीस साल पहले हीअपनी जयह बना ली थी। मैं इस EMI को गलत या सही साबित करने की योगयता तो नहीं रखती लेकिन इतना जरूर कह सकती हूँ कि जिस उधार को हमारे बुजुर्गो ने जानलेवा बताया था वही आज के EMI नाम से आसानी से हमारे यहाँ अपनी जगह बना ली है। हमारे बुजुर्ग ये कहते थे की पाँव उतनी ही फैलाए जितनी चादर हो लेकिन अब ये सोचना है की पाँव को फैलाते जाओ चादर खुदही वहां तक आ जाएगी। आज की पीढ़ी गाड़ी मकान जैसी चीज़ो के लिए लम्बा इंतज़ार नहीं कर सकती और करे भी क्यों जब एक से एक लुभावने प्रस्ताव बैंक के साथ कई कंपनियों के मद्धम से उनके दरवाज़े पैर मात्र एक हाँ के इंतज़ार में खड़े है।
महाभारत के एक सर्ग में जब यक्ष युधिष्ठिर से पूछता है की कौन सा मनुष्य सुखी है तो युधिष्ठिर कहते जो मनुष्य उधार से मुक्त है वही असली सुखी है। आज के दौर में शायद वो दोनों ही असमंजस में पड़ जाते कि किसे सुखी माना जाए। मेरे स्वर्गीय दादाजी जिनके देहांत को करीब एकतालीस साल हो गए उनकी मृत्यु अचानक अपनी नौकरी के लिए जाते हुए ट्रेन में हो गयी थी, अत्यन्त अल्पायु में हुए मौत के बावजूद न उनका कोई उधार बाकी था और न किसी तरह की देनदारी। उलटे कुछ लोग उनसे लिए एडवांस लिए पैसे वापस करने को ही आ गए। नहीं जानती कि मैं ही पीछे हूँ या हमारी पीढ़ी या हमारी ही बहुत आगे निकल गयी है।
महाभारत के एक सर्ग में जब यक्ष युधिष्ठिर से पूछता है की कौन सा मनुष्य सुखी है तो युधिष्ठिर कहते जो मनुष्य उधार से मुक्त है वही असली सुखी है। आज के दौर में शायद वो दोनों ही असमंजस में पड़ जाते कि किसे सुखी माना जाए। मेरे स्वर्गीय दादाजी जिनके देहांत को करीब एकतालीस साल हो गए उनकी मृत्यु अचानक अपनी नौकरी के लिए जाते हुए ट्रेन में हो गयी थी, अत्यन्त अल्पायु में हुए मौत के बावजूद न उनका कोई उधार बाकी था और न किसी तरह की देनदारी। उलटे कुछ लोग उनसे लिए एडवांस लिए पैसे वापस करने को ही आ गए। नहीं जानती कि मैं ही पीछे हूँ या हमारी पीढ़ी या हमारी ही बहुत आगे निकल गयी है।
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