Sunday 3 March 2024

श्री तेजकर झा द्वारा लिखित पुस्तक "Darbhanga Chronicles" पिछले कुछ दिनों से मैं पढ़ रही थी। किताबों की श्रृंखला में कुछ पुस्तकें ऐसी होती हैं जिन्हें आप अच्छी तरह से समझ ही पढ़ते हैं और इस तरह की पुस्तकें आपके लिए यादगार साबित होती हैं , श्री झा की इस किताब को मैं इसी श्रेणी में रखना चाहूंगी।
यह पुस्तक दरभंगा राज के संबंध में लिखी गई है । श्री झा ने इसे छह भागों में बांटते हुए इसके सभी पहलुओं पर फोकस किया है।
पहले भाग  इतिहास में राज दरभंगा के शासकों के उत्पति और  राज विस्तार के बारे  विस्तृत रूप से बताया गया है। खड़वा,जबलपुर और मंडला से संबंधित  इसके आदिपुरुष महामहोपाध्याय गंगाधर झा से संकर्षण ठाकुर से होते हुए महेश ठाकुर ने दरभंगी खान को परास्त कर इस राज की स्थापना हुई। जिस पर कुल अठारह राजाओं ने शासन किया ।
दूसरे भाग में गेराल्ड डेनबी जिनका नाम , मिथिलावासी डेनबी रोड के रूप में बचपन से सुनते आए हैं, के बारे में जानना काफी रोचक है ।एक ऐसा ब्रिटिश जो हमेशा के लिए अपने पूरे परिवार के साथ लंदन जाने को जहाज पर चढ़ चुका था महाराज के एक आग्रह पर लंदन यात्रा को अंतिम क्षणों में स्थागित कर दी और पूरी शिद्दत से महाराज की मित्रता और राज की ओर से मिले पद को  ईमानदारी से निभाया ।यह उसी की दूरदर्शिता का परिणाम था कि राज के हर क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई ।लेकिन जब राज के खर्च को कम करने के लिए कर्मचारियों की छंटनी की बारी आई तो महाराज के विरोध के बावजूद  उसने अपने पद का त्याग किया। कम शब्दों में उसने अपनी वेदना पत्र में महाराज को लिख भेजा कि यहां के लोगों ने मेरे ब्रिटिश होने के कारण कभी मुझे वफादार नहीं माना और ब्रिटेन के लोगों ने एक देशी राजा की नौकरी के कारण मेरी इज्जत नहीं की लेकिन मैंने हमेशा ही आपसे( महाराज) से अपनी मित्रता ही निभाई।
तीसरे भाग पॉलिटिक्स में लेखक ने तत्कालीन कांग्रेस और दरभंगा राज के संबंधों के बारे में प्रकाश डाला है । इस विषय में स्वतंत्रता से पूर्व और उसके बाद की राजनीति काफी रोचक है।
गांधी जी की south Africa की यात्रा और उसके संबंध में महाराज से किया गया पत्राचार इस किताब में तारीख के साथ दर्ज किया गया है। 1934 के विनाशकारी भूकंप के बाद गांधीजी ने उस समय रामबाग के कैंप में रह रही बड़ी महारानी से सवाल किया कि वे संभवत महारानी होने के कारण आराम ही करती होगी ? महारानी ने विनम्रता से जवाब दिया कि मिथिला की स्त्रियां बचपन से ही चरखा चलाने में सिद्धहस्त होती हैं।
Democracy वाले भाग को पढ़ने से उस समय जमींदारी उन्मूलन अभियान के साथ ही उस वक्त की कई बिंदुओं पर ध्यान दिया गया है।
इस पुस्तक का अंतिम और सबसे दिलचस्प भाग है दरबार डायरी  जो कि महाराज की दो डायरियों पर आधारित है। इसमें महाराज की व्यक्तिगत बातों के साथ दिन प्रति दिन घट रही समस्याओं का बहुत ही अच्छा वर्णन है। इसे पढ़ते हुए आप किसी शीर्षस्थ व्यक्ति की तनावपूर्ण जीवन को भलीभांति अनुभव कर सकते हैं।         इस किताब को पढ़ने की सिफारिश मैं सिर्फ इसलिए नहीं करती हूं कि ये अमुक व्यक्ति या अमुक स्थान विशेष पर लिखी गई है बल्कि हमारे लिए यह एक लज्जास्पद बात है कि हम अपने ही राज्य के किसी भी राजवंश के इतिहास से बिल्कुल अनभिज्ञ हैं।इसी पुस्तक के अनुसार स्वतंत्रता के समय बिहार में लगभग पचास हजार छोटी बड़ी रियासतें थी जिनमें छह प्रमुख थी लेकिन हम सभी के लिए अफसोस की बात है कि किसी भी राजवंश के बारे में सुनी सुनाई और अधकचरे ज्ञान के अलावा हम कुछ भी नहीं जानते हैं।

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