Sunday 3 March 2024

गत 20Feb को मशहूर रेडियो उद्घोषक अमीन सयानी जी का देहांत हो गया। संभवत उस जमाने का शायद ही कोई उनकी जादुई आवाज से अपरिचित होगा । उनके संबंध में   "The Times of India" ने बड़ी दिलचस्प बात लिखी कि भारतीय होने और अपने सगे भाई के AIR में पहले से कार्यरत होने के बाद भी इतनी जादुई और मखमली आवाज के बाद भी क्या कारण था कि उन्होंने अपना कैरियर AIR के बजाय लंका (रेडियो सिलोन) से शुरू किया तो इसका कारण यह था कि उस समय ऑल इण्डिया रेडियो की नीति थी कि इसमें मात्र परंपरागत कलाकारों और वाद्य यंत्रों को प्रमोट करने के नाम पर उन्हें ही प्रवेश दिया जाता था और तो और इस कसौटी पर हारमोनियम भी विदेशी होने के कारण खरा नहीं उतरता था तो हिंदी फिल्मी गाने तो दूर की बात थी । ऐसे में अमीन सयानीजी ने अपने कैरियर की शुरुवात रेडियो सिलोन से की जो कि हिंदी फिल्म के गानों से जुड़ा कार्यक्रम था और चंद ही वर्षों में काफी प्रसिद्ध हो गया. बाद के वर्षो में AIR ने भी अपनी नीतियों में बदलाव के साथ 1957 में विविध भारती की स्थापना हुई जिससे हिंदी फिल्मी गानों की ऑल इण्डिया रेडियो पर प्रवेश मिला । बाद में भारतीय जनता की नब्ज को पकड़ते हुए इस कार्यक्रम को फौजी भाइयों के लिए समर्पित किया गया। इन सभी बातों का सार यह है कि आम जीवन हो या टेक्नोलॉजी में परिवर्तन की गुंजाइश हमेशा ही बनी रहती है बशर्ते उसका दुरुपयोग न किया जाए। कंप्यूटर के आने से पहले एक भ्रांति यह थी इससे बेरोजगारी बढ़ जाएंगी लेकिन आज इसके बिना जिंदगी नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर मालूम होती है। विवाह हो या अंतिम संस्कार उनमें होने वाले कई रिवाज मात्र इसलिए निभाया जा रहा हैं क्योंकि ये पुरानी हैं और हमेशा से होती आई हैं। गाहे बिगाहे हम या हमसे ऊपर की आज की पीढ़ी से अपनी तुलना करते हैं लेकिन होने वाले परिवर्तन को स्वीकारना हमारे लिए कई मायनों में जरूरी है।
 अपनी पुस्तक पथ का दावा में  शरद चंद कहते हैं कि कोई भी पुरानी चीज  सिर्फ इसलिए सही नहीं हो सकती क्योंकि वो पुरानी हैं जिस तरह सत्तर साल का बूढ़ा कभी भी दस साल के बच्चे से पवित्र नहीं हो सकता है। 
तो किसी भी नई चीज या विचार को नकारने से पहले उसके गुण  दोषों पर विचार करना श्रेयस्कर है क्योंकि यूं भी पुरानी शराब अच्छी होने के बाद भी उसके बॉटल और कलेवर को नया रूप दिया जाता है।

No comments:

Post a Comment