कुछ दिन पहले किसी इंग्लिश मैगज़ीन में अद्भुत तस्वीर देखा विषय था ,जब भगवान औऱ इंसान एक दूसरे से मिले तो दोनों ने एक दूसरे को my creator कह कर गले लगा लिया अर्थात मेरे सृजनकर्ता । ये तो शाश्वत सत्य है कि हमारे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की रचना ईश्वर द्वारा की गई है अब रही ईश्वर के मुख से इंसान को अपने निर्माणकर्ता के रूप में पुकारे जाने की बात ।इस बात को विज्ञान भी मान चुका है कि आदि काल से एक ऐसी अदृश्य शक्ति है जो हमारे साथ जीवनपर्यंत रहती है और जन्म मृत्यु के साथ साथ पूरे संसार का संचालन अपने ही हाथों से करती है । लाख तरक्की के बावजूद विज्ञान महाशक्ति के समक्ष अकसर बेबस साबित हो जाता है।अब बात आती है उस शक्ति को नाम देने की तो कभी हम उसे भगवान कहते हैं ,कभी अल्लाह, कभी वाहे गुरु और कभी ईसा मसीह।अपनी कल्पनाशीलता के अनुसार मूर्ति का रूप देते हैं या कभी उन्हें क्रॉस कह कर सर झुकाते हैं ।संभव है इसी कल्पनाशीलता को सृजनकर्ता के नाम से पुकारा गया हो । देखा जाए तो हर धर्म की गूढ़ता में एक ही बात ।लेकिन धर्म की आड़ ने युगों से टकराव को जन्म दिया है और ये आने वाले कई दशकों तक सत्ता जीतने की पूरी गारंटी देती रहेगी ।अपनी माँ के मुंह से सुना है कि मेरे नानाजी कल्लर भोज किया करते थे शायद इसके पीछे दरिद्रनारायण की अवधारणा रही हो ।अकसर मेरी सासु माँ कहा करती हैं कि किसी के मन को तृप्त करने से बड़ा तीर्थ कोई नहीं ।नहीं जानती क्या सच है या भगवान किस तीर्थ और कितने समय की पूजा से प्रसन्न होते हैं क्योंकि मुझे तो ऐसा लगता है जो खुशी किसी भूखे बीमार और जरूरतमंद को खुश करके ही मिलती है वो घंटों की पूजा और व्रत से नहीं ।
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