कल सावन की पहली सोमवारी थी । हमारे यहाँ मुँह अंधेरे से छोटे- छोटे बच्चे बेलपत्र ले लो कहते हुए सड़क के इस कोने से उस कोने तक कई कई चक्कर लगाते हैं और शायद 20-25 रुपए कमा लेते हैं।कल लगभग 11 बजे चौक की दुकान से लौट रही थी तो पीछे से 8-9 साल का बच्चा पूछने लगा ,आंटी बेलपत्र लीजिएगा ? मैंने कहा इस समय ?मैंने तो नाश्ता भी कर लिया ।इतनी लेट से क्यों लाते हो , 8- 9 साल होने पर भी उसकी बोली में तुतलाहट थी ,आंटी सुबह तो इस्कूल जाते हैं न ! वाह ,मैंने कहा तो जाने से पहले आकर बेलपत्र दे दो ।चलो मैं अपना घर दिखा दूँ ।छोटा सा बच्चा मेरे पीछे पीछे ।बोला ,मैं सुबह 6 बजे से पहले आकर दे दूँगा ।मैंने कहा सुनो ,तुम संडे को देना ,उस दिन स्कूल बंद होता है ।हाँ ठीक है ।कहता हुआ लड़का चला गया ।कल से बहुत बारिश हुई और कुछ उच्च कक्षाओं को छोड़कर सभी स्कूल जिलाधिकारी के आदेश से बंद हो गए ।आज सुबह बल्कि बहुत सुबह वो बच्चा ,आंटी पूजा कर लीं?नहीं तो ,लीजिए बेलपत्र ।अरे तुम स्कूल नहीं गए, नहीं आज तो पानी के कारण स्कूल बंद हो गया न ! अरे हाँ ! कितने पैसे ? 5 रुपये का एगारह ! मुझे ऐसा लगा कि इसे दस रुपए दे दूँ ।लेकिन फिर अपने आप को रोका ।जब वो छोटा सा बच्चा मेहनत करने को तैयार है तो उसे भीख क्यों दूँ ? चाहे सरकार बाल श्रम के विरूद्ध कितने ही कानून बनाए जब तक वो सबके लिए रोजगार या रोटी नहीं जुटा सकती , हर गरीब के घर के छोटे बच्चे पैसे की जुगत लगाते ही रहेंगे ।पर इस बच्चे के लिए दो अच्छी बात लगी ,पहला उसका स्कूल जाना और दूसरा उसका मेहनत करना।
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