Wednesday, 20 May 2020

आज लॉकडौन के लगभग दो महीने हो  रहे हैं। पिछले संदेश में प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने लोगों से आत्मनिर्भर बनने की बात कही ।इस शब्द का तमाम सोशल साइट्स पर काफ़ी मजाक भी बनाया गया ।लेकिन आत्मनिर्भरता किसी के लिए भी जरूरी है कोई देश हो,राज्य हो या फिर चाहे वो छोटा सा बच्चा ही क्यों न हो धरती पर पड़ने वाला उसका वो पहला कदम जो बिना किसी मदद के वो उठाता है भविष्य में  उसके दौड़ने के रास्ते में अहम साबित होता है । किसी भी राज्य के आत्मनिर्भर होने के लिए बहुत से तथ्य होते हैं ।उद्योगऔर कृषि  संबंधी ,शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी आत्मनिर्भरता ।यहां उल्लेखनीय है कि कुछ दशक पूर्व बिहार इनमें से कुछ मामलों में बिल्कुल स्वालम्बित था । घरेलू खपत के साथ साथ चावल, मकई ,दाल जैसे अनाजों और आम,लीची जैसे फल सरकारी आय का बड़ा हिस्सा थीं ।  इसके साथ यहां के अच्छे शिक्षण संस्थान के कारण कभी विद्यार्थियों को बिहार से बाहर जाने की जरूरत  ही नहीं पड़ती थीं बल्कि कई बाहरी बच्चे भी यहां के कॉलेजों में पढ़ाई करने आते थे।लेकिन धीरे धीरे हम पिछड़ने लगे और कृषि से लेकर शिक्षा तक हमारा पायदान नीचे की ओर खिसकता गया ।एकाध  तकनीकी और मेडिकल कॉलेजों के अलावा यहां के कॉलेज राजनीति का अड्डा बन गए  बिहार की स्थिति इसलिए भी दयनीय है क्योंकि आज किसी भी मामले में ये राज्य आत्मनिर्भर नहीं रह गया है जबकि विधाता ने कृषि योग्य अत्यंत उपजाऊ मिट्टी के साथ साथ नदियों और पोखरों का वरदान दिया है जिसके कारण  इसने कभी देश के बाहर के देशों पर भी राज किया था। इसे  बिहार के लिए दुखद ही कहेगें  कि नदी और पोखरों से  भरा होने के बाद भी हमारा बिहार मछली के लिए आज भी आंध्र प्रदेश पर ही निर्भर है जिसके कारण आय का एक बड़ा हिस्सा राज्य से बाहर चला जाता है जो थोड़े से प्रयत्न से बचाया जा सकता है ।अगर  लोकल मछली मिलती भी है तो लोगों को इसकी प्राय दुगुनी कीमत अदा करनी पड़ती है। जबकि पड़ोस का  पठारी प्रदेश झारखंड इस मामले में पूर्ण रूप से न केवल आत्मनिर्भर बन चुका है  बल्कि विगत दो तीन  वर्षों से झारखंड  के प्रमुख शहरों में आंध्र प्रदेश से आने वाली मछली की बिक्री न के बराबर है और तो और झारखंड इस मामले में अपने क्षेत्र का प्रमुख निर्यातक बन चुका है यहां ध्यान देने वाली बात यह कि झारखंड के कुछ शहरों को छोड़कर बाकी सभी पानी की कमी से जूझ रहे हैं और जहां तक मैं समझती हूं वहां के तालाब अधिकतर पानी के लिए वर्षा जल पर ही निर्भर हैं । अभी की स्थिति में  लाखों मजदूरों की  वापसी के बाद मत्स्य पालन बिहार को  रोजगार बढ़ाने के साथ साथ राजस्व बढ़ाने में काफी मदद कर सकता है हालांकि इस दिशा में पूर्णिया के कुछ क्षेत्रों में पहल की गई है लेकिन ये उत्पादन बिहार के लिए नगणय कहा जाएगा है क्योंकि इन  क्षेत्रों में लोगों के मुख्य भोजन में मछली की प्रधानता होती है अर्थात यहां का ये उत्पादन बस रोजमर्रा के खाने तक ही सीमित है जबकि यहां मत्स्य पालन बड़े पैमाने पर किए जाने पर जहां इसे मैथिल बहुल क्षेत्रों का स्थानीय सहयोग मिलेगा वहीं बंगाल,आसाम से सटे होने के कारण  बड़ा बाजार भी सहज प्राप्य है ।आने वाले समय में सरकार को जरूरत है कुछ ऐसे ही रोजगार के साधनों का, जो राज्य सरकार की आय को दूसरे राज्य में जाने से बचाने के साथ साथ कोरोना के कारण  बेरोजगारी की मार झेल रहे मजदूरों को एक नई दिशा प्रदान करें  ।

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