Thursday, 2 May 2019

एक सफ्ताह पूर्व  सुप्रसिद्ध दैनिक अखबार की ओर से मदर्स डे के लिए लेखों,संस्मरणों और कहानियों को आमंत्रित किया गया था । उस अखबार की ओर से पाठकों को उन कर्मठ माताओं के विषय में लिखने का आग्रह किया गया था जिन माताओं ने अपने घर और ऑफिस की ड्यूटी बखूबी निभाते हुए अपने बच्चों का अच्छा लालन पालन किया । मैंने आज  अखबार का वो कॉलम अभी नहीं देखा ।निश्चय ही उसमें एक से एक प्रशंसनीय लेख छपे होगें लेकिन इस जगह पर आकर  मेरा उस अखबार से  छोटा सा विरोध है ।कोई भी माँ जो अपने घर और ऑफिस को संभालते हुए अपने बच्चों का लालन पालन करती है वो अपने बच्चों के लिए एक मिसाल बनती है यहां कई माँ ऐसी होती हैं जो परिस्थितिवश अपने बच्चों को या तो पति के अकाल मृत्यु की वजह से या कई बार पति से आपसी तालमेल नहीं होने के कारण अपने बच्चे के लिए माँ और बाप दोनों की भूमिका निभाती है ।निःसंदेह इस तरह की माताएं काबिलेतारीफ कही जा सकती हैं। मात्र  इस तरह की बातें ही हम  साधारणतया सार्वजनिक तौर पर देखते हैं । माँ तो हर तरह से महान है उसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती है। लेकिन जब भी इन बातों की चर्चा होती है तो  मेरा ध्यान हमेशा से फौज में अपने बेटों को भेजने वाली अनपढ़ ,बेबस और गरीब माँ पर जाता है जो इस बात को जानते हुए कि बेटे का मुंह शायद वो दुबारा देख न सके उसे विदा कर देती है । इनमें से कई माताएं ऐसी भी होती हैं जिन्होंने भरी जवानी में अपने पति को भी इसी देश की रक्षा में खोया था । न कोई पहचान न कोई   प्रशस्ति पत्र की चाह बस एक देश प्रेम के  जज्बे को लेकर ये माताएं अपने कर्तव्य का   निर्वाह करती हैं । यक्ष युधिष्ठिर वार्ता में जब यक्ष ने धर्मराज से पूछा कि किस बोझ को सहन करना असहनीय होता है तो धर्मराज का उत्तर था, अपने कंधे पर जवान बेटे की लाश से अधिक भारी बोझ कुछ नहीं होता वस्तुत मैंने अपनी निजी जिंदगी में अपनी धर्मभीरू दादी को अपने दो पुत्रों की अकाल मृत्यु पर बिन पानी मछली की तरह छटपटाते हुए देखा है । हम जिस देश में पन्ना धाय का इतिहास सुनते हैं वहाँ हम कैसे इस तरह की जननी को भुला दें ।दूसरी ओर वे माताएं  अथवा वे सेक्स वर्कर्स  जो अपनी संतान को अगर एक इज्जत की जिंदगी देने के लिए  हर रात नारकीय जीवन  का दर्द झेलती है वो मेरी नज़र में किसी भी माँ से महान है ।
कितना मुश्किल है अपनी ही नज़र में गिरना और समाज की अवहेलना सहन करना लेकिन अपने संतान के अच्छे भविष्य की चाह के कारण वह माँ को उस गलत काम के लिए भी नहीं झिझकती ।  आज जमाने ने संयुक्त परिवार को पीछे छोड़ दिया लेकिन याद करें उन माताओं को  जिन्होंने कभी अपने बच्चे या देवर ,ननद के बच्चों में फर्क नहीं किया जिन्होंने हमेशा अपने बच्चों को बांटना सिखाया और पूरी जिंदगी समदर्शी बनी रही क्या कहा जाए उन्हें ! अपने लिए जीये तो क्या जियें ,ऐ दिल तू जी ले औरों के लिए   😢

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