एक जमाना था जब ऐतिहासिक फिल्मों ने बॉलीवुड के परदों पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया था इनमें से कई सफल हुई और कई असफल। मेरे हिसाब से इन फिल्मों को बनाना फिल्मकारों के लिए काफी जोखिम भरा होता है गोकि न इनमें दिखाए गए किरदारों को किसी ने देखा है और न ही इनके बारे में बहुत ज्यादा मालूम होता है ।खास बात है कि इनका खर्च आम फिल्मों के मुकाबले काफी अधिक होता है और कई बार ये बनने के साथ ही विवादों में घिर जाती है ।पिछले कुछ दिनों से अखबार और सोशल मीडिया पर मणिकर्णिका नामक फ़िल्म की खूब चर्चा सुन रही हूं जो शायद रानी लक्ष्मीबाई के ऊपर बनाया गया है । हमारे स्कूली शिक्षा के समय कई ऐसी कविताएं थी जो हमें कंठस्थ थी ।अब या तो सिलेबस के उलट फेर के कारण या किसी अन्य वजहों से आज के बच्चों में ये बात नहीं देखती ।स्वर्गीय सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी ये लंबी कविता मेरी प्रिय कविताओं की लिस्ट में शीर्ष स्थानों में है । कई बार मैं अपनी भावी पीढ़ियों को अपने देश की वीरांगनाओं के विषय में अनभिज्ञ देखकर काफी दुखी हो जाती हूँ और यथासंभव अपनी बेटियों को ऐसी कविताओं के विषय में ऐसे में बताने का प्रयास करती हूं। कल मेरी प्रिय चाची ने मुझसे एक अनुकरणीय घटना का ज़िक्र किया ।उन्होंने बताया कि कुछ दिनों पहले एक छोटी सी बच्ची को स्कूल के लिए जाते समय अपनी माँ के साथ इसी कविता का समवेत पाठ करते हुए सुना ।इस घटना को सुनकर मुझे संतोष हुआ कि मेरे जैसी और भी सिरफिरी माताएँ हैं जो बच्चों को आज भी इस तरह की काव्य पाठ करने की ओर प्रेरित करती है ।इस घटना से मैं पुनः अपने बचपन में लौट जाती हूँ जब शायद 1981-82 का समय होगा मैं नन्ही सी लड़की अपने पूरे चचेरे फुफरे भाई बहनों के साथ दादाजी के राज दरभंगा के घर के विशाल बरांडे पर दादाजी के साथ हर शाम गर्मी या जाड़ों की हर छुट्टियों में इस तरह कविताओं को चिल्ला चिल्ला कर पढ़ा करती थी ।चूँकि बचपन की याद पूरी जिंदगी हमारे साथ चलती है तो दावे के साथ कह सकती हूं कि आज मेरे साथ निश्चय ही जवान हुए बच्चों के माता पिता वाले मेरे भाई बहन भी इस घटना को जरूर याद करेंगे । । नहीं जानती आने वाली फिल्म मणिकर्णिका कैसी है या व्यवसायिक दृष्टिकोण से ये कैसा बिज़नेस करेंगी लेकिन अगर इस पिक्चर से हमारी भावी पीढ़ी के कुछ बच्चे भी अपने देश के स्वर्णिम अतीत को जान सकें तो मेरी नज़र में इस निर्माता निर्देशक ने एक सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाह किया और गणतंत्र दिवस के सत्तरवे साल होने पर उससे भी बहुत पहले की वीरांगना को लोगों के समक्ष लाने की कोशिश की ।
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