लेखक # श्री रणविजय #
पब्लिकेशन #हिंद युग्म #
पृष्ठ संख्या #206#
मूल्य #299#
चीनी मिट्टी रणविजय जी के द्वारा लिखी एक यात्रा वृतांत है। चीन के विषय में यात्रा वृतांत काफी कम देखने में आता है शायद उसका कारण वहां की कम्युनिस्ट सरकार और सोशल मीडिया से वहां लगी रोक हो । हमारे जनसामान्य में किसी भी विदेश की यात्रा के लिए काफी चाहत देखी जाती है लेकिन इस विदेश में चीन की यात्रा शायद ही शामिल हो ।
इस किताब की समीक्षा लिखने में मुझे काफी दिन लग गए , जब मैंने इसे पहली बार पढ़कर लिखना शुरू किया तो मुझे ऐसा लगा कि इसमें लिखे प्राय: सभी ही नामों को मैं भूल गई नतीजन इसके बारे में लिखने के लिए मैंने इसे दुबारा से पढ़ा।
श्री रणविजय जी जो पेशे से इंजीनियर हैं और रेलवे के शीर्षस्थ पद पर हैं ये उनकी पांचवी किताब है,उन्हें अक्टूबर 2019 में पांच दिन के सरकारी दौरे पर चीन के हुनान प्रांत के जुझावो शहर में भेजा गया । ये जगह कोरोना का केंद्र वुहान से थोड़ी सी दूरी पर था और इस यात्रा के कुछ ही महीनों के बाद कोरोना का तांडव शुरू हुआ था।चीन एक ऐसा रहस्यमय देश, जिसकी सटीक उपमा लेखक ने सीप में बंद एक मोती से दी है ।
एक ऐसा देश जिसका GDP 1978 तक हमारे देश के समकक्ष था ,अब 15ट्रिलियन डॉलर के साथ दूसरे नंबर पर पहुंच गया है,एक ऐसा देश जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं होती है जहां सोशल मीडिया के नाम पर Wrechat ही है अर्थात वो पूरी दुनिया से कटा हुआ हैं जिन्होंने बायडू के नाम से अपना google बना रखा है,फिर भी ये देश विश्व की फैक्ट्री कहलाता है ।जो अपने आप में इतना दमखम रखता है कि तमाम विरोध के बावजूद अमेरिका को अपने टॉयलेट पेपर तक के लिए चीन पर ही निर्भर रहना पड़ता है। रेलवे के पूरे विश्व के बिजनेस का सत्तर प्रतिशत चीन का है ,जो काम हमारे यहां घंटों में होता है कुशलता से वो मिनटों में हो जाता है।इतनी सारी उपलब्धियों के बीच खड़ा चीन लेखक के मन में गहरी छाप छोड़ने को पर्याप्त था ।
किसी जमाने में भले ही तीर्थयात्री और मेहमान के रूप में आए फाहियन और ह्वेनसांग ने हमारे देश के इतिहास पर काफी कुछ लिखा है जो हमारे लिए बेशकीमती है । अगर वर्तमान में राजनीतिक स्थिति के कारण भारत और चीन दुश्मन नहीं है तो दोस्त भी नहीं है लेकिन जब रणविजय जी ने इस मामले में वहां के लोगों से कुछ जानना चाहा तो इस विषय में उन्हें बिल्कुल ही तटस्थ पाया।
ये किताब जहां आपको चीन के दर्शनीय जगहों की सैर बखूबी करवाती है वहीं भोजन संबंधी कठिनाइयों को बताते हुए अच्छी जानकारी भी देती है। जहां इस किताब के कुछ ऐसे प्रसंग ऐसे हैं जिन्हें पढ़कर आपको वहां के भोजन के प्रति वितृष्णा हो जाएगी वहीं इस में कुछ हास्य प्रसंग भी हैं उदहारण के लिए चीनी भोजन को देखकर लेखक का यह सोचना कि किसको किस चीज के साथ मिलाकर खाया जाए ! शारीरिक बनावट के हिसाब से भी वे इतने फिट हैं कि चीनी बाप बेटे या मां बेटी में कोई भी अंतर नहीं होता है ये अंतर आप बस काफी नजदीक से ही जान सकते हैं।
पूरी किताब में कुछ ऐसी बातें हैं जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि शायद इन्हीं कारणों से चीन आज इस ऊंचाई पर पहुंच चुका है। पूरे चीन में एक ही भाषा मंदारिन,और लिपि का प्रयोग,बड़ी आबादी के बाद भी सरकार का ऐसा नियंत्रण, एक व्यक्ति को एक ही घर रखने का सरकारी फैसला जो एक अवधि की लीज पर हो । सड़क की क्षमता के अनुसार गाड़ी की बिक्री और ध्यान देने वाली सबसे बड़ी बात कि धर्म के नाम पर कोई विवाद नहीं।
पुस्तक में वर्णित बुलेट ट्रेन की यात्रा,चीन की विशाल दीवार को देखना, टेंपल ऑफ हेवन को देखना सही मायने में बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है।
रेटिंग के अनुसार इस पुस्तक को निश्चित तौर पर दस में नौ देना कहीं से भी गलत नहीं होगा। शुरू से अंत तक ये आपको अपने सम्मोहन में बांधे रखती है। चीन से लेखक की एक स्वस्थ ईर्ष्या मसलन उनकी उन्नत तकनीक को देखकर ,हाय हुसैन ! हम क्यों न हुए ! सॉफ्टवेयर में अब भी चीन पीछे है क्योंकि उसे अंग्रेजों की अंग्रेजी जो नहीं आती , सड़कों पर चीनियों के भी नियम उल्लंघन पर मन ही मन प्रसन्न होना !! इस प्रकार की घटनाएं और पंक्तियां पुस्तक में स्वाभाविकता बनाए रखती है।
इन सब के बावजूद इस किताब को पढ़ते हुए मैं मन ही मन कई बार सिहर उठी कि कभी अगर वहां गई तो ,दूसरे क्षण मन ने जवाब दिया कि रणविजय जी ने लिखा है कि वहां भी अच्छी और सुंदर दुनिया बसी हुई है और हमारे सोच के मुताबिक वहां के लोग न तो बर्बर है न ही हिंसक।