Wednesday, 2 April 2025

कुछ बातें,कुछ यादें,कुछ सवाल आपके हाथों में जा रही हैं। ये किताब है मेरी उन यादों की जिसमें मैं कभी अपनी दीदी को महसूस करती हूं और कभी भइया के साथ बालपन के झगड़े को ।वे छोटी बड़ी बातें जो आज तक मैंने सुनी हैं और हैं कुछ सवाल जो निरंतर मेरे मन में आती हैं।
ये कोई गूढ़ साहित्य नहीं है और न ही कोई ऐतिहासिक तथ्यों से भरी हुई लेखनी है।कुछ यादें जैसे ननिहाल की यात्रा जो सबके बाल्यावस्था का सुनहला पन्ना होता है।वो ससुराल की बातें, त्योहारों की गहमा गहमी और भी बहुत कुछ । इस पुस्तक में मैंने अन्य पुस्तकों की तरह किसी पोस्ट में कोई शीर्षक नहीं डाला है। इसके पीछे मेरी मंशा, शीर्षक का निर्णय पाठकों के हाथों में ही  हो ।
किशोरावस्था से मां के उपन्यासों को चोरी छिपे पढ़ते हुए मैंने हुए मैंने कई लेखक लेखिकाओं को जाना । विवाहोपरांत बच्चियों को पढ़ाने के क्रम में पढ़ने पढ़ाने की आदत बनी रही और इसी में लेखन की आदत ने भी जन्म लिया जिसके लिए रफ कॉपी का काम किया fb ने ।
इस दिशा में मुझे प्रोत्साहन देने का श्रेय मेरे चाचा ( श्री नागेश चंद्र मिश्र) को जाता है।यहां मैं ईमानदारी से स्वीकार करती हूं कि अपने सभी fb पोस्ट्स के लिए मैंने उनके कमेंट्स की प्रतीक्षा आतुरता से की है।
बचपन से मेरी आदर्श रही साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजी गई मेरी बुआ सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती नीरजा रेनू ।जिनके जैसा बनने की इच्छा सदैव मेरे मन में रही है।
मेरे सभी लेखों के पहले श्रोता हैं मेरे पति श्री अशोक झा, जिन्होंने मुझ नौसीखिए  को सदा झेला है ।मेरे अधकचरे लेखन की परामर्शदात्री है मेरी बड़ी बेटी वसु और छोटी मीठी ने मेरे बेतरबी से पड़े पोस्ट्स को तकनीकी रूप से संकलित किया है।
     आज अपनी पुस्तक को अपने हाथों में पाकर मैं सादर प्रणाम करती हूं सभी श्रेष्ठजनों को और सादर नमन करती हूं, दिवंगत पापा ,सासु मां और पापा जी को ।

Tuesday, 25 February 2025

 आप सभी को महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं । आज का मेरा ये पोस्ट अलग अलग तरह के दो पोस्टों पर आधारित है। 
               ये तो सर्वविदित है कि हिंदू धर्म के अनुसार सबसे सफल दाम्पत्य जोड़ी महादेव और गौरी की है।अगर थोड़ी देर के लिए तुलना की जाए तो सीता के मिथिला की बेटी और राम के मर्यादा पुरूषोतम होने के बावजूद मैथिल भी अपनी बेटियों को दामाद के रूप में राम नहीं महादेव को पाने का आशीर्वाद देते हैं । सीता और राम की जोड़ी में सदैव एक कर्तव्यबोध का अहसास होता है।लेकिन शिव और पार्वती तो किसी भी आम पति पत्नी की तरह हैं जिसमें कभी बच्चों के झगड़ों निबटाने में पार्वती को भांग पीसने में देर हो जाती है और महादेव नाराज़ हो जाते हैं तो कभी महादेव गौरी से मेले में चलने और जलेबी खाने का आग्रह करते हैं।इन सभी का जिक्र  मिथिला की नाचरी में देखने में आता है। दूसरी ओर महेश वाणी में महादेव का बखान सुनने में आता है। नचारी और महेशवाणी को अगर आप विस्तार में जानना चाहते हैं तो आप डॉ .प्रवीन झा (महेशवाणी और नचारी ) को पढ़ सकते हैं । https://praveenjha.in/maheshvani/
  दूसरी ओर शिव और पार्वती को एक आम जोड़ी मानते हुए श्री ध्रुव गुप्त जी उनके बीच होने वाले वाद विवादों की चर्चा करते हैं। आज उनके द्वारा लिखा ये मजेदार पोस्ट बरबस ही आपको हंसने पर मजबूर कर देगा । https://www.facebook.com/share/p/18LWGA6qJn/

Thursday, 9 January 2025

अगहन का महीना अमूमन सभी हिन्दू सम्प्रदायों के  शादी ब्याह से भरपूर होता है। वैसे तो शादियों में किया जाने वाले खर्च में सभी जगहों पर बेहताशा वृद्धि हुईं है लेकिन हर समाज में हर लगन में एक या दो शादियां ऐसी जरूर होती हैं जो अपने लेन देन की वजह से महीनों तक चर्चा में रहती हैं। 
     मैं मिथिला के श्रोत्रिय ब्राह्मण समुदाय से हूं। जो काफी हद तक अपने आप में सिमटा हुआ है । हर समुदाय की तरह इसमें शादी ब्याह संबंधी बहुत से नियम और कायदे हैं जो समय के साथ बदलते जा रहे हैं।
     अगर 25 से 30साल पहले हमारे यहां की शादियों की बात करें तो ये काफी परंपरागत और सादगी पूर्ण हुआ करती थी। जातिगत नियम काफी कट्टर हुआ करती थी ,शादी में पालन किए जाने वाले नियम काफी परंपरागत और खर्च के लिहाज से आम कन्या या वर के पिता के साथ समाज के लिए भी सहज हुआ करते थे । गौर करने वाली बात ये है कि परंपरा के नाम पर वधू तक का शृंगार बुजुर्ग महिलाओं के द्वारा प्राकृतिक रंगों की सहायता से किया जाता था जिसे पासाहिन कहा जाता था जो सिद्धहस्त और अनुभवी  हाथों के कारण बहुत ही खूबसूरत दिखता था। पासाहीन कई तरह के होते हैं जो किसी भी शुभ अवसर सुहागिनों के माथे पर सिंदूर, विशेष तरह की बिंदियों आदि के द्वारा की जाती है।इनकी चर्चा (पासाहिनो)  मैं अपने दूसरे पोस्ट में विस्तार से करना भी चाहूंगी क्योंकि यह एक दिलचस्प विषय है। शादी में परोसा जाने वाला भोजन शाकाहारी और बिना नमक का होता है।सभी बाराती धोती कुर्ते में रहते हैं और लड़की की मुंह दिखाई भी इतनी ही होती है कि सभी आसानी से वहन कर सकें। पहले के समय अनुसार सभी वैवाहिक कार्यक्रम परिवार और समाज के द्वारा ही  निबटाए जाते थे । चूंकि दहेज के दानव से यह सम्प्रदाय मुक्त है इसलिए लड़की को दिए गए सामानों की चर्चा तो होती थी लेकिन उतनी ही ताकि कम औकात के लोग शर्मिंदगी महसूस न करें । गौरतलब है कि दरभंगा के महाराज भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते थे जिनका लेन देन राजसी होता था लेकिन जन साधारण के लिए लेन देन संबंधी कोई बाध्यता नहीं थी। इसी कारणवश कई बार वैवाहिक संबंध में आर्थिक विषमता भी देखने में आती थी।सादगी और शालीनता के बावजूद विवाह आने वाले सभी मेहमानों के खाने पीने और रहने की समुचित व्यवस्था की जाती थी। प्राय घर पर बनी मिठाइयां होती थीं जो वक्त बेवक्त आने वाले मेहमानों को भी  परोसी जाती थी। शादी में आने वाले मेहमानों को आस पास के घरों में मेहमानों को ठहराया जाता था इन सभी बातों का तात्पर्य यह है कि हमारे यहां की शादियों मुख्य रूप से संस्कार प्रधान और दिखावे से परे हुआ करती थी। वर और वधु दोनों ही कम उम्र के हुआ करते थे।
     उपर्युक्त सभी बातों की चर्चा मैंने  कई बार भूतकाल में किया है इसका कारण यह है कि विगत पांच वर्षों में हमारे यहां की शादियों में काफी परिवर्तन आया है। सबसे अच्छी बात यह हुई है कि आज के समय में  प्राय वर और वधु दोनों परिपक्व हो जाते हैं और बहुधा लड़कियां भी शादी के समय आत्मनिर्भर होती हैं। आज के समय में विवाह के लिए मात्र वर की मंजूरी को ही पर्याप्त नहीं माना जाता है अब लड़कियां भी अपने विवाह के लिए  राय देती हैं। अंतर्जातीय विवाह में काफी वृद्धि हुई है और प्राय इस तरह के विवाह को परिवारिक और सामाजिक मंजूरी मिल चुकी है।
लेकिन किसी भी समाज पर समय के सकारात्मक प्रभाव के साथ साथ नकारात्मक प्रभाव पड़ना लाज़मी है। हमारे यहां के विवाह जयमाल,हल्दी या मेंहदी जैसे फंक्शन से परे होते थे जो कि अब दूसरी शादी में दिखने लगा है,शादियां भव्य और फिल्मी दुनिया से प्रभावित होने लगी हैं जो खर्च और दिखावे से ओत प्रोत से भरी हुई होती हैं। दिखावे के इस दौर में न सिर्फ वर वधु बल्कि उनके परिजनों को भी बेशकीमती उपहार दिए जा रहे हैं ।
क्या इस तरह की देनदारी पहले की शादियों में नहीं होती थी ?  जब इस बात की चर्चा मैंने अपने      
से की तो उनका सहज जवाब था बिल्कुल होती थी  क्योंकि माता पिता को सदैव ही अपने संतानों के भविष्य को हर तरह से सुखी बनाना चाहते हैं। कई बार बेटियों को विवाह के बाद आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता था ऐसे में माता पिता अनेकों प्रकार से उनकी मदद करने के आगे आते थे । उनके बच्चे अर्थात नाती नातिन का पालन पोषण ननिहाल में किया जाता था। बेटियों को समय समय पर सनेश (उपहार) भेजा जाता था ।कई बार उन्हें (बेटियों को )ससुराल में चिट्ठी पत्री के खर्च के नाम पर मासिक मदद इस तरह से की जाती थी जिससे ससुराल पक्ष की गरिमा को ठेस न पहुंचे और बेटियों को देने का उद्देश्य पूरा हो जाए और तो और बेटियों को पितृ पक्ष से जमीन दी जाती थी।
आज का दौर बदल चुका है हमारी सोच ये है कि अगर हम किसी को कुछ दे