मानव के अस्तित्व आने से लेकर आधुनिक इतिहास तक स्वर्गीय राहुल सांस्कृतायन की ये रचना निश्चय ही इतिहास और साहित्य के लिए अनुपम सौगात है।
नदियों के किनारे बसने वाली सभ्यता किस तरह पहले मातृसत्तात्मक रूप से शुरू हुई और धीरे धीरे स्त्रियों के पतन की ओर उन्मुख होती गई ।
जब तक मनुष्य के मन में संग्रह करने की प्रवृति नहीं विकसित हुई थी वह लगातार भटकता रहता था।धीरे धीरे अनाज फिर तांबा, लोहा और बाद में सोना आदि को मानव आविष्कृत करता गया और लालची होता गया ।
राजा के दैवी सिद्धांत के कारण दास और दासियां जानवरों की तरह बेचे जाते थे। आज भले ही हम सनातन धर्म और हिंदू धर्म की दुहाई दे लेकिन ब्राह्मणों तक में सुरा और गोमांस खाने की परंपरा थी ।इस्लाम धर्म की उत्पति और काफी नवीन होने पर भी पूरे विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ जबकि बौद्ध धर्म जनमानस के लिए आसान था ।हिंदू धर्म की जटिलता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि किसी भी चांडाल के लिए नगर में प्रवेश करना निषिद्ध था और अतियआवश्वक स्थिति में वे नगर में एक डंडे और एक बर्तन के साथ प्रवेश करते थे।दूर से डंडे पीटते और अपने थूक को उस बर्तन में फेंकते उनकी स्थिति कुत्ते से भी बदतर थी ।
हिंदू धर्म के कुछ अच्छे सिद्धांत भी थे , कम उम्र में होने वाली विधवाओं को एक साल से अंदर द्वि वर अर्थात देवर से ब्याह दिया जाता था । धीरे धीरे इस प्रथा का निषेध हो गया और इसके जगह सती प्रथा जैसी कुरीतियां जन्म लेने लगी ।
इसी प्रकार की रोचक बातें और ऐतिहासिक जानकारियों से संबंधित ये पुस्तक आपको तभी दिलचस्प लग सकती है जब आप इन बातों में रुचि रखते हो । हल्के फुल्के किताबों के शौकीन पाठकगण इस किताब का आनंद नहीं ले सकते हैं ये मेरी निजी सलाह है।