पुस्तक समीक्षा ##16##
पुस्तक का नाम ## एक टीचर
की डायरी
लेखिका ##श्रीमती भावना शेखर #
पब्लिकेशन #प्रभात पेपरबैक्स ##
नए लेखकों को पढ़ने का मेरा अब तक का अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा है। मैंने अधिकांश नए लेखकों में स्थापित लेखकों के नकल करने की प्रवृति देखी है।
इसके विपरित कल जब मैंने श्रीमती भावना शेखर जी की किताब "एक टीचर की डायरी" को पढ़ना शुरू किया तो यकीन मानिए ऐसा लगा कि मैं फिर से अपनी बेटियों के स्कूली समय में पहुंच गई हूं ।
ये एक सुखद संयोग है कि श्रीमती भावना शेखर ने राजधानी पटना के उसी नोट्रेडम स्कूल में छब्बीस सालों तक अध्यापन का कार्य किया है जिसमें मेरी दोनों बेटियां पढ़ती थी और बड़ी बेटी ने छठी और सातवीं कक्षा में उनसे शिक्षा भी पाई है।
पुस्तक की पहले ही पन्ने पर लेखिका ने ईमानदारी से स्वीकारा है कि इस स्कूल की नौकरी उन्होंने बेटी के एडमिशन के जद्दोजहद के क्रम में शुरू किया लेकिन बाद के अध्यापन के लंबे समय में इस कार्य को इतनी शिद्दत से किया कि अपनी छात्राओं के लिए प्रेरणा स्रोत भी बनी रही ।
इस पतली सी किताब में लिखी हुई बातें आपको आपके बच्चों के जीवन उस हिस्से में पहुंचा देंगी जिसमें न जाने वे कितने ही समस्याओं से जूझते रहते हैं। घरों में होने वाले यौन शोषण से लेकर, माता पिता के बीच होने वाले ऐसे झगड़े, जिसमें पिता का ही अन्यत्र अफेयर हो जैसी कई अन्य परेशानियां जो किशोरवय बच्चे किसी से साझा नहीं कर पाते ऐसे समय में एक मां की तरह टीचर का होना उनके लिए वरदान के समान है ।वैसे भी अपनी बेटियों के स्कूली जीवनकाल में छात्राओं और शिक्षिकाओं के बीच की आत्मीयता को मैंने महसूस किया है।
पुस्तक में लिखी गई कुछ बातें यथा कभी कभी बच्चे तनाव में आकर परीक्षा में नकल करने लगते हैं उनकी इस गलती को माफ कर उन्हें मौका देना , बच्चे के आर्थिक रूप से कमजोर होने पर उनकी मदद के लिए सोचना , बुजुर्गों का भावना में बह कर बच्चियों का विचित्र नामकरण करने पर उनका सामूहिक
मजाक का शिकार होने से बचाना ,अभिभावकों के द्वारा किया गया दुर्व्यवहार जैसी घटनाएं आपको वास्तविकता से रूबरू कराती है।
पुस्तक के दूसरे हिस्से में लेखिका ने अपने विद्यार्थी जीवन के संस्मरण लिखे हैं जो काफी रोचक हैं।
एक ऐसा स्कूल जहां बहुधा महानगरों और विदेशों तक से बच्चियां पिता के ट्रांसफर के बाद पढ़ने को आती हैं, जहां राजधानी के उच्च पदासीन कर्मचारियों और टॉप बिजनेस फैमिली की बेटियां पढ़ती हैं , वहां आपकी बच्चियों के गलत दिशा में बढ़ने की संभावना कई गुना बढ़ जाती हैं और फिर यह भी जरूरी नहीं कि हर बच्ची को नोट्रेडम जैसा स्कूल या श्रीमती शेखर जैसी टीचर का संरक्षण मिल जाए ।
कुल मिला कर मैं उन माताओं से इस पुस्तक को पढ़ने का आग्रह करती हूं जो अपने बच्चों को किसी प्रतिष्ठित स्कूल में डाल कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझती हैं और कभी कभी छोटी सी गलती माता पिता की नासमझी के कारण घातक साबित होती है।