आज भले ही मेरी मां किताब के दो चार पन्ने पढ़ने में ही थक जाती है लेकिन किसी जमाने में इन्हीं किताबों और मैग्जीनस में मां की जान बसती थी। घर में धर्मयुग , सारिका और साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी पत्रिकाएं मासिक तौर पर ली जाती थी। साथ ही बहुत से उपन्यास पापा अपने कॉलेज की लाइब्रेरी से मां के पढ़ने के लिए लाते थे और कई उपन्यास धारावाहिक श्रृंखला के रूप में धर्मयुग आदि में छपते थे और किस्त पूरी होने पर सूई धागे से सिलकर किताब का रूप दिया जाता ।
इन्हीं दिनों मां ने शायद अपने जैसी ही किसी पुस्तक प्रेमी की सलाह पर घरेलू लाइब्रेरी योजना से किताब वी पी के द्वारा मांगना शुरू किया।ये एक ऐसी मासिक योजना थी जिसके तहत चुनिंदा लेखकों की किताबें अच्छे डिस्काउंट के साथ लोगों को घर पर मुहैया कराई जाती थी।भले ही फ्लिपकार्ट या अमेजन जैसे सहायकों से किताबों का खरीदना बहुत ही आसान है लेकिन उस समय इस योजना से किताब मांगना इतना भी आसान नहीं था।पहले कंपनी के द्वारा एक पोस्टकार्ड या टिकट लगा लिफाफा दिया जाता था,साथ ही किताबों की बाकायदा लिस्ट भेजी जाती थी जिसका चयन कर किताबें खरीदने वाला पोस्टकार्ड भेज देता था और फिर पंद्रह बीस दिनों का लंबा इंतजार किया जाता था । फिर पोस्टमैन किताबों की वी पी लाता जिसेआज की C O D की तर्ज पर पैसे देकर छुड़ा लिया जाता था। घर बंद होने की स्थिति में डाकिया मात्र कार्ड डाल कर अपनी उपस्थिति दर्ज कर जाता था । पुस्तकों को सात दिनों के अंदर निकट के पोस्ट ऑफिस में सुरक्षित रखा जाता था जिसे वहां से पैसे देकर लाया जा सकता था। किताबों के पोस्ट ऑफिस से नहीं लेने पर कंपनी को दोहरा डाक खर्च वहन करना पड़ता था जिसके बाद आपको कंपनी के द्वारा उपालंभ से भरी चिट्ठी भेजी जाती थी और आपको इस योजना के लिए "ब्लैक लिस्टेड"कर दिया जाता था,ठीक उसी तरह अगर आप किसी नए ग्राहक को अपने द्वारा जोड़ते हैं तो आपको इनाम में अपनी पसंद की किताबें भी दी जाई जाती थी। ये सिलसिला काफी वर्षों तक चला । बाद के वर्षो में किताबों की डिलीवरी में कुछ शिकायतें आने लगी और लोगों के द्वारा चुने गए किताबों की जगह नए लेखकों की किताबें आने लगी जो पाठकों को नागवार लगने लगी।
यहां एक राज़ की बात ये है इसी घरेलू लाइब्रेरी योजना के कारण घर में अच्छी किताबें आती रही और पहले चोरी छिपे और बाद में मुझे भी मां के साथ साथ उपन्यास पढ़ने की आदत लग गई जो आज मेरे अच्छे बुरे समय में मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं है।